Saturday, July 27, 2013

शेखचिल्ली और कंजूस सेठ

एक बार कि बात है कि एक गांव कंजूस सेठ रहता था। उसकी कंजूसी के चर्चे दूर-दूर तक मशहूर थे। उसके पास कोई भी जाना पसंद नहीं करता था। पड़ोस के एक गांव से एक युवक उस सेठ के पास नौकरी मांगने आया।

सेठ ने कहा- नौकरी तो तुमको मिल जाएगी, लेकिन मेरी एक शर्त है, अगर तुम शर्त मानते हो तो काम मिलेगा वरना नहीं।

उस युवक ने सेठ से शर्त पूछी।

सेठ ने कहा- तुमको सुबह से लेकर शाम तक काम करना होगा। जो भी काम कहा जाएगा, वो करोगे। उसके बदले तुमको दो रुपये महीना और दिन में एक बार भोजन मिलेगा, वो भी किसी पेड़ के पत्ते पर पूरा भरकर। इस पर भी अगर तुम काम छोड़ कर गए तो मैं तुम्हारे नाक-कान काट लूंगा और अगर मैं तुमको निकालता हूं तो तुम मेरे नाक-कान काट सकते हो। बोलो शर्त मंजूर है।

युवक मजबूर था, उसने सेठ की शर्त मंजूर कर ली।

इसके बाद युवक सेठ के यहां रहकर काम करने लगा। कंजूस सेठ उस युवक से जमकर काम लेता। घर का काम, बाजार का काम, खेत का काम। युवक जब थक कर चूर हो जाता तो शाम को अपने लिए एक बर्गद के पेड़ का पत्ता तोड़ता और उस पर खाना मांगता। बर्गद के छोटे से पत्ते पर जरा सा खाना आता। पूरा पत्ता भरकर खाने के बावजूद वह भूखा रह जाता। धीरे-धीरे उस युवक की तबियत खराब होने लगी। बिना खाए काम करते-करते उसका शरीर कमजोर हो गया। एक-दो महीने के बाद उसके अंदर काम करने की ताकत खत्म हो गई। लेकिन अगर वो काम छोड़ता है तो उसको सेठ के हाथों अपने नाक-कान कटवाने पड़ेंगे। इस डर से वो काम करता रहा।

लेकिन एक दिन उसको लगा कि अगर वो इसी तरह काम करता रहा तो वो मर जाएगा, और मरने से अच्छा है कि अपने नाक-कान कटवा लिए जाएं। इसलिए हारकर उसने सेठ से कहा- सेठ जी मैं काम छोड़ना चाहता हूं।

सेठ ने ये बात सुनने पर अपनी शर्त दोहराई। युवक ने कहा- जैसा आप चाहो वैसा करो, लेकिन मुझे इस नौकरी से मुक्ति दो।

सेठ ने चाकू से उस युवक के नाक काम काट लिए और उसको काम से निकाल दिया।

नाक-कान कटवाकर अपने घर पहुंचा। घर पर उसके भाई शेखचिल्ली ने जब बड़े भाई की हालत देखी तो उसको बहुत गुस्सा आया। उसने पूछा- तुम्हारी ये हालत किसने की?

युवक ने अपनी पूरी कहानी शेखचिल्ली को सुना दी।

शेखचिल्ली बोला- तुम चिंता मत करो भैया मैं उस सेठ से तुम्हारा बदला लूंगा।

शेखचिल्ली ने कमर कसी और उस सेठ के पास नौकरी मांगने पहुंच गया। उसने सेठ को ये नहीं बताया कि वो उस युवक का भाई है जिसके सेठ ने नाक कान काटे हैं।

सेठ ने शेखचिल्ली के सामने भी वही शर्त दोहरा दी। शेखचिल्ली ने सेठ की पूरी शर्त मान ली।

अगले दिन से शेखचिल्ली का काम शुरू हो गया। सेठ ने पहले दिन शेखचिल्ली से कहा- जा, जाकर बैलों को पानी दिखा लो।

शेखचिल्ली गया और दोनों बैलों को तालाब के किनारे खड़ा करके लौटा लाया। शाम तक बैलों का प्यास के कारण बुरा हाल हो गया और उनमें से एक बैल मर गया।

सेठ ने शेखचिल्ली से पूछा- ये बैल हांफते-हांफते मर कैसे गया? क्या तुमने इनको पानी नहीं पिलाया था?

शेखचिल्ली ने कहा- नहीं तो!

सेठ ने पूछा- फिर मैंने तुमको किसलिए भेजा था इन्हें लेकर?

शेखचिल्ली ने कहा- आपने बोला था कि पानी दिखा ला, सो मैं पानी दिखाकर लौटा लाया।

सेठ ने कहा- हाय मेरे कर्म! अबे गधे, जब कोई काम कहा जाए तो एक काम बढ़कर करना चाहिए एकदम बातों पर नहीं जाना चाहिए। समझा!

इसके बाद शेखचिल्ली का खाने का समय हो गया। वो जंगल में गया और अपने लिए एक बड़ा सा केले का पत्ता तोड़ लाया।

सेठ ने पूछा- ये क्या है?

शेखचिल्ली बोला- पत्ता है सेठ जी। खाना दो। पूरा भरकर।

सेठ का सनाका निकल गया। खैर शर्त के मुताबिक उसको खाना देना पड़ा। पत्ता इतना बड़ा था कि उसको भरते-भरते घर का खाना खत्म हो गया। शेखचिल्ली ने पूरा पत्ता भरकर दाल-चावल खाए।

अगले दिन सेठ ने एक नया बैल खरीदा और शेखचिल्ली को आदेश दिया- जा आज इन दोनों को पानी जरूर पिला देना। इसके बाद हल लेकर पूरा खेत जोत आना। वहां से जब शाम को वापस लौटे तो शिकार करके थोड़ा गोश्त ले आना। घर में खाना पकाने की लकडि़यां खत्म हो गई हैं, लौटते समय लकडि़यां भी लेते आना।

शेखचिल्ली हल और बैल लेकर खेतों पर चला गया। खेत की जुताई करने के बाद वो थक गया। ईंधन की लकडि़यों के लिए उसने हल को ही काटकर छोटे-छोटे टुकड़े कर दिये। जब गोश्त के लिए कोई शिकर नहीं मिला तो उसने सेठ के कुत्ते को काटकर गोश्त निकाल लिया।

शाम को शेखचिल्ली सारा सामान और अपना केले का पत्ता लेकर सेठ के घर पहुंच गया। सेठ की बीवी ने खाना पकाया।

जब खाना खाने का समय आया तो शेखचिल्ली ने कहा- मैं केवल दाल-चावल खाऊंगा, मैं मांस नहीं खाता।

शेखचिल्ली को केले के पत्ते पर दाल-चावल दे दिये गए।

सेठ ने जब पका हुआ गोश्त खाने के बाद बोटी डालने के लिए अपने कुत्ते को आवाज लगाई तो कुत्ता नहीं आया। बार-बार बुलाने पर भी जब वो नहीं आया तो सेठ को हैरानी हुई, उसने शेखचिल्ली से पूछा- आज शेरू कहां है।

शेखचिल्ली ने कहा- जब मुझे कोई शिकार नहीं मिला तो मैंने शेरू को काटकर गोश्त निकाल लिया।

सेठ को बहुत गुस्सा आया। वो खूब चिल्लाया। पर शेखचिल्ली पर कोई असर नहीं पड़ा।

अगले दिन सेठ ने जब शेखचिल्ली से खेत जोतने के लिए कहा तो शेखचिल्ली बोला- खेत तो जोत दूं, लेकिन हल कहां है?

सेठ ने पूछा- क्यों हल कहा गया? कल ही तो तू लेकर गया था।

शेखचिल्ली बोला- अरे मुझे ईंधन के लिए लकडि़यां नहीं मिल रही थीं, इसलिए हल को काटकर ही तो कल मैं ईंधन जुटा कर लाया।

सेठ ने अपना माथा धुन लिया। एक तो इतने बड़े पत्ते पर खाना खाता है। ऊपर से सारे काम बिगाड़ता है। सेठ को लगा कि नया नौकर उसको बहुत महंगा पड़ रहा है। वो सोचने लगा कि आखिर कौन सी घड़ी में उसने शेखचिल्ली को अपने यहां काम पर रखा।

कुछ दिन बाद सेठ की सेठानी बीमार पड़ गई। सेठ ने शेखचिल्ली से कहा जा पड़ोस के गांव जाकर वैध जी को खबर कर दे कि आकर दवा-दारू कर देंगे।

शेखचिल्ली ने अपना गमछा उठाया और पड़ोस के गांव में जाकर वैध जी को खबर कर दी। वैध जी अपनी दवाओं का झोला लेकर सेठ के यहां चल दिया। लौटते वक्त शेखचिल्ली ने पूरे इलाके में खबर कर दी कि सेठ की सेठानी मर गई है। सेठ के बाग में जाकर ढेर सारी लकडि़यां काट डाली और बैल गाड़ी में भरकर सेठ के घर पहुंच गया। वहां सेठानी की मौत कर खबर सुनकर पूरा गांव सेठ के यहां जमा हो गया था।

सेठ सबको समझा रहा था कि सेठानी मरी नहीं है, बस थोड़ा बीमार है। इतने में वहां शेखचिल्ली लकडि़यों से भरी बैलगाड़ी लेकर वहां पहुंच गया।

सेठ ने पूछा- अरे कमबख्त अब ये लकडि़यां क्यों उठा लाया?

शेखचिल्ली ने पूछा- क्यों सेठ जी। सेठानी को फूंकने के लिए लकडि़यों की जरूरत नहीं पड़ेगी क्या?

सेठ का चेहरा तमतमा रहा था- अबे फूंकुंगा तो तब जब वो मरी होगी, अभी तो वो जिंदा।

शेखचिल्ली बोला- तो थोड़ी-बहुत देर में मर जाएंगी।

सेठ को बहुत गुस्सा आया- मैं तेरा सिर फोड़ दूंगा। ये सब तू मेरे साथ क्यों कर रहा है?

शेखचिल्ली बोला- आप ही ने तो कहा था कि एक काम बढ़कर करना चाहिए। इसलिए जब आपने मुझे बताया कि सेठानी जी बीमार हैं, तो मुझे लगा कि बीमार हैं, तो मर भी जाएंगी, फिर आप मुझ से कहोगे कि गांव भर में खबर कर दो, इसलिए मैंने पूरे गांव में खबर कर दी। फिर आप बोलते कि फूंकने के लिए लकडि़यां ले आओ इसलिए मैं आपका बाग काटकर लकडि़यां ले आया। अब बताओ मैंने क्या गलत किया?

अपना चहेता बाग कटने की बात सुनते ही सेठ का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और वो शेखचिल्ली को गालियां बकने लगा। उसने कहा कि जा दूर हो जा मेरी नजरों, मुझे नहीं कराना तुझ से कोई काम।

शेखचिल्ली बोला- चला तो मैं जाऊंगा, लेकिन आपको शर्त याद है न। अपने नाक-कान मुझे दे दो। क्योंकि अब आप मुझे निकाल रहे हो, मैं खुद नहीं जा रहा। और शेखचिल्ली ने सेठ के नाक कान काट लिये।

सेठ के नाक-कान शेखचिल्ली ने अपने गांव जाकर अपने भाई को दिखाए तो सब बहुत खुश हुए।

2 comments:

  1. very nice story.. jaise ko taisa mila :)
    Nav-Varsh ki shubhkamnayein..
    Please visit my Tech News Time Website, and share your views..Thank you

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  2. बहुत सुंदर कहानी है जी आपकी वेरी नाइस

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