Friday, June 7, 2013

खिचड़ी बना दी

एक बार शेखचिल्ली अपनी ससुराल गए। ससुराल में उनकी सास उनसे प्यार तो करती थीं, पर एक नंबर की कंजूस थीं। उन्होंने शेखचिल्ली के लिए बहुत सारे पकवान न बनाकर उनके लिए सिर्फ खिचड़ी बनाई। खिचड़ी अभी बन ही रही थी कि शेखचिल्ली रसोई में पहुंच गया और बातें करने लगा। बातों-बातों में शेखचिल्ली का हाथ ऊपर रखे घी के डिब्बे से टकरा गया और पूरा डिब्बा खिचड़ी में गिर गया। पूरा एक किलो घी खिचड़ी में समा गया। शेखचिल्ली की कंजूस सास को बहुत गुस्सा आया। लेकिन कुछ कहते नहीं बना। सास के मन में ख्याल आया कि अगर वो सारी खिचड़ी शेखचिल्ली को दे देती है तो सारा घी उसके हाथ से निकल जाएगा। उसको जरा सा घी भी खाने को नहीं मिलेगा। सो, सास ने एक तरकीब सोची। जैसे ही शेखचिल्ली खिचड़ी खाने चारपाई पर बैठा तो सास ने झट से कहा- दामाद जी हमारे यहां रिवाज है कि सास और जमाई एक ही थाली में खाना खाते हैं। शेखचिल्ली ने सास को अपने सामने चारपाई पर बैठा लिया। सास का वजन शेखचिल्ली से ज्यादा था, इसलिए थाली सास की तरफ झुक गई और खिचड़ी का ज्यादातर घी बह कर उसकी तरफ पहुंच गया।

खिचड़ी में जब एक किलो घी पड़ा हो तो उसके स्वाद के क्या कहने। शेखचिल्ली को खिचड़ी इतनी पसंद आई कि वो अपनी सास के गुणगाान करने लगा। शेखचिल्ली ने अपनी सास से पूछा ये जो आपने मुझे खिलाया इसका नाम क्या था, मैं घर जाकर इसे ही बनवाउंगा। सास ने बताया कि इसे खिचड़ी कहते हैं।

शेखचिल्ली को लगा कि रास्ते में वो इसका नाम न भूल जाए सो वो चलते-चलते उसका नाम रटने लगा- खिचड़ी, खिचड़ी, खिचड़ी, खिचड़ी, खिचड़ी......

खिचड़ी-खिचड़ी रटते हुए उसे रास्ते में उसे लघुशंका लगी। वो जैसे ही लघुशंका करके उठा। वो खिचड़ी की जगह खाचिड़ी-खाचिड़ी रटने लगा।

जब वो खाचिड़ी खाचिड़ी करता हुआ जा रहा था, तो रास्ते में एक किसान अपने खेत की चिडि़या उड़ा रहा था। जैसे उसने शेखचिल्ली के मुंह से खाचिड़ी खाचिड़ी सुना उसको बहुत गुस्सा आया। उसने झट से शेखचिल्ली को पकड़ा और उसको गरियाते हुए बोला- मैं यहां सुबह से चिडि़या उड़ाते-उड़ाते थक गया और तू बोल रहा है खाचिड़ी-खाचिड़ी। बेवकूफ तुझे बोलना चाहिए उड़चिड़ी-उड़चिड़ी।

शेखचिल्ली अब उड़चिड़ी-उड़चिड़ी बोलने लगा और बोलते-बोलते आगे चल दिया।

जब शेखचिल्ली उड़चिड़ी रटते हुए जा रहा था तो एक तालाब के किनारे एक आदमी ने मछली पकड़ने के लिए कांटा डाला हुए था। जब उसने शेखचिल्ली के मुंह से उड़चिड़ी-उड़चिड़ी सुना तो उसको बहुत गुस्सा आया। उसने झट से शेखचिल्ली को पकड़ लिया और दो चमाट मारते हुए बोला- अबे मैं सुबह से यहां बैठा मछली पकड़ने की कोशिश कर रहा हूं और तू बोल रहा है उड़चिड़ी-उड़चिड़ी। तुझे तो ये बोलना चाहिए- ‘आते जाओ फंसते जाओ, आते जाओ फंसते जाओ’।

अब शेखचिल्ली वही बोलने लगा और बोलते हुए आगे चल दिया।

जब शेखचिल्ली ‘आते जाओ फंसते जाओ’ रटता हुआ जा रहा था तो उधर से कुछ चोर चोरी करने के इरादे से जा रहे थे। जैसे ही उन्होंने शेखचिल्ली के मुंह से सुना ‘आते जाओ फंसते जाओ’ तो उनको बहुत गुस्सा आया। उन्होंने उसको पकड़कर पीटा और कहा कि एक तो हम चोरी करने जा रहे हैं और तू बोल रहा है कि आते जाओ फंसते जाओ। तुझको तो बोलना चाहिए- ‘आते जाओ रखते जाओ...’

अब शेखचिल्ली वही रटने लगा, जो उसे बताया गया और आगे चल दिया।

जब शेखचिल्ली ‘आते जाओ रखते जाओ’ रटता हुआ जा रहा था तो रास्ते में श्मशान घाट पड़ा वहां कुछ लोग एक मुर्दा लेकर आए थे। जैसे ही उन्होंने शेखचिल्ली के मुह से सुना आते जाओ रखते जाओ, तो उन सबको बहुत गुस्सा आया और उन्होंने शेखचिल्ली को पकड़कर खूब पीटा। और कहा मनहूस क्यों ऐसी मनहूसियत की बातें कर रहा है तुझे तो ये बोलना चाहिए- जैसा यहां हुआ वैसा कहीं न हो, जैसा यहां हुआ वैसा कहीं न हो।

अब शेखचिल्ली यही बात रटता हुआ आगे चल दिया।

जब तो ये बात रटते हुए आगे बढ़ रहा था तो रास्ते में एक राजा के बेटे की बारात जा रही थी। जैसे ही लोगों ने शेखचिल्ली के मुंह से सुना कि जैसा यहां हुआ वैसा कहीं न हो, तो बारातियों को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने शेखचिल्ली को पकड़कर पीटना शुरू कर दिया। उन्होंने उससे कहा कि ऐसे शुभ काम में भी तू ऐसी मनहूस बातें कर रहा है। तुझे तो ये बोलना चाहिए जैसा यहां हो वैसा सबके यहां हो।

अब शेखचिल्ली यही बात बोलता हुआ आगे चल दिया। और चलते चलते अपने घर पहुंच गया।

घर पहुंचते पहुंचते वो खिचड़ी का नाम पूरी तरह भूल गया। घर पर उसकी पत्नी मिली उसने अपनी मां के हाल चाल पूछे। हाल चाल बताने के बाद शेखचिल्ली ने अपनी पत्नी को प्यार से पास बुलाया और बोला- सुनो, आज तुम हमको वही बनाकर खिलाना जो तुम्हारी मां ने हमें खिलाया था।

पत्नी खुश होकर बोली- अरे इसमें क्या बात है, बना दूंगी, तुम ये बताओ कि मां ने क्या खिलाया था।

अब शेखचिल्ली को खिचड़ी का नाम याद न आए। वो बस पत्नी से अकड़कर बोला- ये सब मैं कुछ नहीं जानता, मुझे तो केवल वही खाना है जो तुम्हारी मां ने मुझे खिलाया।

पत्नी हैरान और परेशान होकर बोली- बनाउंगी तो तब जब मुझे ये पता चलेगा कि मां ने बनाया क्या था?

शेखचिल्ली को गुस्सा आ गया और वो पत्नी से झगड़ने लगा। पत्नी को भी गुस्सा आ गया और वो भी जवाब देने लगी।

दोनों में खूब बहस हुई और बात हाथापाई पर पहुंच गई। शेखचिल्ली ने अपनी बीवी को धुनाई शुरू कर दी। बीवी चिल्लाती हुई घर के बाहर निकल आईं। शेखचिल्ली उसको बाहर घर के चैक पर पीटने लगा। पत्नी का बुरा हाल हो गया। लेकिन शेखचिल्ली का हाथ नहीं रुका।

शोर सुनकर अड़ोसी-पड़ोसी बाहर निकल आए और तमाशा देखने लगे। तभी उन लोगों में एक बुढि़या बोली- हाय रे नाश हो तेरा... बेचारी बहू को मारते-मारते उसकी खिचड़ी बना दी।

खिचड़ी का नाम सुनते ही शेखचिल्ली का दिमाग चैंका और वो बोला- वही तो मैं कह रहा था इससे बनाने के लिए। इत्ती देर से सुन ही न रही है बात को।

बीवी बोली अरे मेरे खसम पहले ही बता देते कि तुमको खिचड़ी खानी है तो मैं तुम्हें पहले ही पका कर खिला देती।

खैर दोनों मिया-बीवी घर के अंदर आए। पत्नी ने खिचड़ी बनाई और दोनों में मिलकर खाई। लेकिन शेखचिल्ली को उतना स्वाद नहीं आया जितना सास की खिचड़ी में आया था।

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