एक राजा के महल में पिलखुन का पेड़ था। उस पेड़ पर एक चिडि़या अपना घोंसला बनाकर रहती थी। एक बार उस चिडि़या को कहीं से कानी कौड़ी मिल गई। चिडि़या ने उस कानी कौड़ी को लाकर अपने घोंसले में रख लिया और अपनी इस धरोहर पर इतराने लगी।
चिडि़या हर रोज सुबह उठती और गाना शुरू कर देती- जो हम पै, सो काहु पै न... जो हम पै, सो काहु पै न...।
रोज-रोज चिडि़या का गाना सुनकर महल के लोग तंग आ गए। महल के राजा ने अपने सिपाहियों को हुकुम दिया- ‘‘जाओ, जाकर देखकर आओ, ऐसा क्या है इस चिडि़या के पास जो किसी के पास नहीं है!’’
राजा के सिपाही दौड़कर गए, पेड़ पर चढ़े और चिडि़या के घोंसले में झांककर देखा। उसमें एक कानी कौड़ी रखी थी। उस कौड़ी को देखकर सिपाही खूब हंसंे
वो लौटकर आए और आकर सारी बात राजा को बताई। राजा को भी सुनकर बहुत हंसी आई। अभी राजा हंस ही रहा था कि चिडि़या ने फिर गाना शुरू कर दिया- जो हम पै, सो काहु पै न... जो हम पै, सो काहु पै न...।
राजा को चिडि़या का ये शेखी गान सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने अपने सैनिकों से कहा- ‘जाओ और जाकर इस चिडि़या की कानी कौड़ी उठा लाओ’। सैनिक दौड़े-दौड़े गए और चिडि़या के घोंसले से कानी कौड़ी उठा लाए।
चिडि़या जब शाम को लौटी, तो उसने अपने घोंसले में कानी कौड़ी न पाकर इस तरह रोना शुरू कर दिया- ‘‘राजा कंगाल हमारी कानी कौड़ी ले गए, राजा कंगाल हमारी कानी कौड़ी ले गए।’’
राजा को चिडि़या का इस तरह आरोप लगाना बेहद नगवार गुजरा। उसने झुंझलाहट में अपने सैनिकों से कहा ‘‘जाओ उस ससुरी की कानी कौड़ी वापस रख आओ।’’
सैनिक दौड़े-दौड़े गए और चिडि़या की कानी कौड़ी वापस रख आए।
चिडि़या जब शाम को लौटी तो अपनी कानी कौड़ी वापस पाकर जोर-जोर से चिल्लाने लगी- ‘‘राजा डरपोंक हमारी कानी कौड़ी दे गए.... राजा डरपोंक हमारी कानी कौड़ी दे गए...।’’
चिडि़या के इस आरोप ने राजा को बेहद गुस्से से भर दिया। उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया- ‘जाओ इस बड़बोली चिडि़या को भालों से छेद दो।’
सैनिक अपना भाला लेकर गए और जाकर चिडि़या को भालों से छेद दिया। चिडि़या बुरी तरह घायल हो गई।
उसके घावों से खून बहने लगा। खून को देखकर चिडि़या ने गाना शुरू किया- ‘हमें लाल लंगोटा पाए जी, हमें लाल लंगोटा पाए जी...।’
फिर दो दिन बाद उसके घावों में पस पड़ गया। इस पर चिडि़या ने गाना गया- ‘हमें दही के मटके पाए जी, हमें दही के मटके पाए जी...।’
चिडि़या जब मरणासन्न हो गई तो उसको हिचकी आने लगी। तो चिडि़या ने गाया- ‘हमें राम झटोका आए जी, हमें राम झटोका आए जी....।’
और आखिरकार वो चिडि़या मर गई।
चिडि़या हर रोज सुबह उठती और गाना शुरू कर देती- जो हम पै, सो काहु पै न... जो हम पै, सो काहु पै न...।
रोज-रोज चिडि़या का गाना सुनकर महल के लोग तंग आ गए। महल के राजा ने अपने सिपाहियों को हुकुम दिया- ‘‘जाओ, जाकर देखकर आओ, ऐसा क्या है इस चिडि़या के पास जो किसी के पास नहीं है!’’
राजा के सिपाही दौड़कर गए, पेड़ पर चढ़े और चिडि़या के घोंसले में झांककर देखा। उसमें एक कानी कौड़ी रखी थी। उस कौड़ी को देखकर सिपाही खूब हंसंे
वो लौटकर आए और आकर सारी बात राजा को बताई। राजा को भी सुनकर बहुत हंसी आई। अभी राजा हंस ही रहा था कि चिडि़या ने फिर गाना शुरू कर दिया- जो हम पै, सो काहु पै न... जो हम पै, सो काहु पै न...।
राजा को चिडि़या का ये शेखी गान सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने अपने सैनिकों से कहा- ‘जाओ और जाकर इस चिडि़या की कानी कौड़ी उठा लाओ’। सैनिक दौड़े-दौड़े गए और चिडि़या के घोंसले से कानी कौड़ी उठा लाए।
चिडि़या जब शाम को लौटी, तो उसने अपने घोंसले में कानी कौड़ी न पाकर इस तरह रोना शुरू कर दिया- ‘‘राजा कंगाल हमारी कानी कौड़ी ले गए, राजा कंगाल हमारी कानी कौड़ी ले गए।’’
राजा को चिडि़या का इस तरह आरोप लगाना बेहद नगवार गुजरा। उसने झुंझलाहट में अपने सैनिकों से कहा ‘‘जाओ उस ससुरी की कानी कौड़ी वापस रख आओ।’’
सैनिक दौड़े-दौड़े गए और चिडि़या की कानी कौड़ी वापस रख आए।
चिडि़या जब शाम को लौटी तो अपनी कानी कौड़ी वापस पाकर जोर-जोर से चिल्लाने लगी- ‘‘राजा डरपोंक हमारी कानी कौड़ी दे गए.... राजा डरपोंक हमारी कानी कौड़ी दे गए...।’’
चिडि़या के इस आरोप ने राजा को बेहद गुस्से से भर दिया। उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया- ‘जाओ इस बड़बोली चिडि़या को भालों से छेद दो।’
सैनिक अपना भाला लेकर गए और जाकर चिडि़या को भालों से छेद दिया। चिडि़या बुरी तरह घायल हो गई।
उसके घावों से खून बहने लगा। खून को देखकर चिडि़या ने गाना शुरू किया- ‘हमें लाल लंगोटा पाए जी, हमें लाल लंगोटा पाए जी...।’
फिर दो दिन बाद उसके घावों में पस पड़ गया। इस पर चिडि़या ने गाना गया- ‘हमें दही के मटके पाए जी, हमें दही के मटके पाए जी...।’
चिडि़या जब मरणासन्न हो गई तो उसको हिचकी आने लगी। तो चिडि़या ने गाया- ‘हमें राम झटोका आए जी, हमें राम झटोका आए जी....।’
और आखिरकार वो चिडि़या मर गई।
No comments:
Post a Comment