Tuesday, July 16, 2013

चिडि़या और गेहूं का दाना

एक बार एक चिडि़या को गेहूं का एक दाना मिला। चिडि़या उसको खाने के लिए एक खूंटे पर जाकर बैठी। उसने दाने को खाने के लिए खूंटे पर रखा, लेकिन खूंटा थोड़ा चिरा हुआ था। दाना उस पर रखते ही खूंटे के अंदर समा गया। चिडि़या ने खूब चोंच मारी लेकिन गेहूं का दाना उससे नहीं निकला। वो बहुत दुःखी हुई। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे उस दाने को खूंटे से निकाला जाए। तभी उसको बढ़ई के पास जाने का ख्याल आया।

चिडि़या उड़ती हुई बढ़ई के पास पहुंची और बढ़ई से बोली- बढ़ई चाचा तुम खूंटे को चीर दो।

बढ़ई ने पूछा- क्यों?

चिडि़या बोली- खूंटे में मेरा दाना गिर गया है। तुम खूंटा चीर दोगे तो मैं उसमें से अपना दाना निकाल लूंगी।

बढ़ई ने कहा- खूंटे ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं खूंटे को चीर दूं। जा नहीं चीरता।

चिडि़या को बहुत गुस्सा आया। वो उड़ते हुए राजा के पास गई और राजा से बोली- राजा! राजा! बढ़ई को सजा दो।

राजा बोला- बढ़ई ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं बढ़ई को सजा दूं।

फिर चिडि़या गई रानी के पास और रानी से बोली- रानी! रानी! तुम राजा से रूठ जाओ।

रानी बोली- राजा ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं राजा से रूठ जाऊं।

फिर चिडि़या गई चूहिया के पास और बोली- चुहिया! चुहिया! तुम रानी के कपड़े काट दो।

चुहिया बोली- रानी ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं रानी के कपड़े काट दूं।

फिर चिडि़या गई बिल्ली के पास और बोली- बिल्ली! बिल्ली! तुम चुहिया को मार दो।

बिल्ली बोली- चुहिया ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं चुहिया को मार दूं।

फिर चिडि़या गई कुत्ते के पास और बोली- कुत्ते! कुत्ते! तुम बिल्ली को मार दो।

कुत्ता बोला- बिल्ली ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं बिल्ली को मार दूं।

फिर चिडि़या गई डंडे के पास और बोली- डंडे! डंडे! तुम कुत्ते को मारो।

डंडा बोला- कुत्ते ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं कुत्ते को मारूं।

फिर चिडि़या गई आग के पास और बोली- अग्नि! अग्नि तुम डंडे को जला दो।

आग बोली- डंडे ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं डंडे को जला दूं।

फिर चिडि़या गई पानी के पास और बोली- पानी! पानी! तुम आग को बुझा दो।

पानी बोला- आग ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं आग को बुझा दूं।

फिर चिडि़या गई हाथी के पास और बोली- हाथी! हाथी! तुम पानी को अपनी सूंड़ से सोख लो।

हाथी बोला- पानी ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं उसे सोख लूं।

चिडि़या हारकर निराश होकर बैठ गई। तभी उसके सामने एक चींटी आई। चींटी ने पूछा- तुम क्यों दुखी हो?

चिडि़या बोली अब मैं तुमको बताकर क्या करूंगी, जब बडे़-बड़े दिग्गज काम नहीं आए, तो तुम मेरे क्या काम आ पाओगी।

चींटी बोली- किसी को बहुत छोटा नहीं समझना चाहिए। तुम मुझको बताओ तो सही।

चिडि़या ने अपनी पूरी बात उसको बता दी।

चींटी बोली इसमें क्या है, मैं अभी जाकर हाथी की सूंड़ में घुस जाती हूं, फिर देखो वो तुम्हारा काम करता है कि नहीं?

जैसे ही चींटी हाथी के पास पहुंची, हाथी बोला- नहीं नहीं मेरी सूंड में मत घुसो, मैं अभी पानी को सोख लेता हूं।

जैसे ही हाथी पानी के पास गया, पानी बोला- नहीं-नहीं मुझे मत सोखो, मैं अभी आग को बुझा देता हूं।

जैसे ही पानी आग को बुझाने लगा, आग बोली- नहीं-नहीं मुझे मत बुझाओ, मैं अभी डंडे को जला देती हूं।

जैसे ही आग डंडे को जलाने लगी, डंडा बोला- नहीं-नहीं मुझे मत जलाओ, मैं अभी कुत्ते को पीटता हूं।

जैसे ही डंडा कुत्ते को पीटने गया, कुत्ता बोला- नहीं-नहीं मुझे मत पीटो, मैं अभी बिल्ली को काटता हूं।

जैसे ही कुत्ता बिल्ली को काटने गया, बिल्ली बोली- नहीं-नहीं मुझे मत काटो, मैं अभी चुहिया को पकड़ती हूं।

जैसे ही बिल्ली चुहिया को पकड़ने गई, चुहिया बोली- नहीं-नहीं मुझे मत पकड़ो मैं अभी रानी के कपड़े कुतरती हूं।

जैसे ही चुहिया रानी के कपड़े कुतरने लगी, रानी बोली- नहीं-नहीं मेरे कपड़े मत कुतरो, मैं अभी राजा से रूठ जाती हूं।

जैसे ही रानी राजा से रूठने लगी, राजा बोला- नहीं-नहीं मुझसे मत रूठो, मैं अभी बढ़ई को सजा देता हूं।

जैसे ही राजा बढ़ई को सजा देने लगा, बढ़ई बोला- नहीं महाराज मुझे सजा मत दो, मैं अभी खूंटे को चीरे देता हूं।

जैसे ही बढ़ई खूंटे को चीरने गया, खूंटा बोला- मुझे मत चीरो मैं अभी चिडि़या का दाना वापस किए देता हूं।

और खूंटे ने चिडि़या का दाना वापस कर दिया। चिडि़या बड़े प्यार से अपने दाने को चोंच में दबाया और उड़ गई।

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