Saturday, June 29, 2013

ला मेरी चने की दाल!

एक बार एक राजकुमार अपने घोड़े पर सवार होकर यात्रा पर निकला। जब राजकुमार जंगल से होकर गुजरा तो उसे ध्यान आया कि इस जंगल में एक बंदर रहता है जो यात्रियों को चने खिलाता था। राजकुमार ने सोचा कि क्यों न उस बंदर से मिला जाए। राजकुमार जंगल में उस बंदर से मिलने के लिए चल दिया। कुछ दूर जाने पर एक नदी के किनारे पेड़ पर वो बंदर मिला। राजकुमार ने उसी पेड़ के नीचे अपने घोड़े को बांध दिया। बंदर ने उसका सत्कार किया और राजकुमार को खाने के लिए चने दिए। चने खाकर राजकुमार ने पेड़ की ठंडी-ठंडी छांव में विश्राम किया।

एक पहर विश्राम करने के बार राजकुमार चलने के लिए तैयार हुआ। जैसे ही राजकुमार चलने के लिए घोड़े पर सवार हुआ, तो बंदर ने अपनी फरमाइश रख दी। उसने राजकुमार से कहा कि वो भी उसके साथ यात्रा पर जाना चाहता है। राजकुमार ने बंदर को साथ ले जाने से इंकार कर दिया। इस पर बंदर बोला- अगर साथ नहीं ले जाना तो ला वापस कर मेरी चले की दाल।

अब राजकुमार बंदर की चने की दाल कैसे वापस करे। तो मजबूरी में उसने बंदर को अपने साथ घोड़े पर बैठा लिया।

चलाचला... चलाचल... एक नदी आई, उस नदी के किनारे महिलाएं दही के मटके लेकर जा रही थीं।

बंदर ने उन महिलाओं को देखकर कहा- राजकुमार मुझे वो दही की मटकी चाहिए।

राजकुमार ने कहा- मैं कहां से दूं मटकी, मटकी तो उन महिलाओं की है। और तू मटकी का करेगा क्या?

बंदर बोला- मैं कुछ नहीं जानता मुझे वो मटकी चाहिए।

राजकुमार ने साफ मना कर दिया।

इस पर बंदर बोला- मटकी नहीं दिलानी तो अपना पेट फाड़ और ला मेरी चने की दाल।

राजकुमार बड़ा परेशान, बंदर ने उसको बुरा फंसाया। राजकुमार बोला- मैं तो नहीं जाऊंगा, तुझे ला मिले तो ले आ मटकी।

बंदर झट से गया और महिलाओं को जोर की घुड़की दी। सारी महिलाएं अपनी मटकी छोड़-छोड़ कर भाग गईं। बंदर ने एक मटकी उठाई और वापस घोड़े पर आकर सवार हो गया।

चलाचल.... चलाचल.... उन्हें रास्ते में एक ढोलक बेचने वाला मिला।

बंदर ने फट से राजकुमार से बोला- मुझे ढोलक चाहिए।

राजकुमार को गुस्सा आया, बंदर की मांग बढ़ती ही जा रही थीं। उसने बंदर से कहा- इस जंगल में तो भला ढोलक का क्या करेगा?

बंदर बोला- मैं चाहे जो करूं, मुझे ढोलक चाहिए बस।

राजकुमार ने साफ मना कर दिया।

इस पर बंदर बोला- या तो मुझे ढोलक दिला या फिर पेट फाड़ और निकाल मेरी चने की दाल।

राजकुमार बुरा फंस चुका था। उसने बंदर से कहा कि अपने आप ले आए ढोलक।

बंदर कूद कर गया और ढोलक वाले को जोर से घुड़की दी, ढोलक वाला अपनी ढोलक छोड़कर भाग गया। बंदर ने एक ढोलक उठा ली और वापस राजकुमार के घोड़े पर आकर सवार हो गया।

चलाचल.... चलाचल.... उनको एक जंजीर बेचने वाला मिला।

बंदर ने फिर राजकुमार से बोला कि उसको जंजीर चाहिए।

राजकुमार के मना करने पर फिर उसने वही धमकी दी कि पेट फाड़ और निकाल मेरी चने की दाल।

आखिरकार बंदर ने लुहार से एक जंजीर छीन ली।

चलाचल... चलाचल.... फिर बंदर ने एक चरवाहे से बकरी का एक बच्चा छीन लिया।

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इस तरह राजकुमार और बंदर एक नगर में पहुंचे। उस नगर में चारों तरफ सन्नाटा पसरा था। राजकुमार को इतना सन्ना देखकर थोड़ा अजीब सा लगा। वे दोनों एक घर के दरवाजे पर पहुंचे। दरवाजा खटखटाया तो अंदर से एक लड़की ने दरवाजा खोला। वो राजकुमार को देखकर हैरान हो गई।

राजकुमार ने पूछा कि तुम इतनी हैरान क्यों हो?

तो उस लड़की ने जवाब दिया- तुम लोग गलत जगह आ गए हो, ये दानवों की नगरी है। अभी सब दानव शिकार पर गए हुए हैं, लेकिन शाम को जैसे ही सब लौटेंगे तुम दोनों को जिंदा नहीं छोड़ेंगे। मेरे पिताजी को पांच कोस तक इंसान की गंध आ जाती है।

इस पर राजकुमार ने कहा- अब तो तुम ही हमें बचा सकती हो, देर बहुत हो चुकी है। वापस जाना मुमकिन नहीं है।

लड़की राजकुमार की सुंदरता पर मोहित हो चुकी थी। सो, उसने राजकुमार को बचाने का फैसला किया। उसने राजकुमार के घोड़े को अपने जादू से मक्खी बनाकर दीवार पर चिपका दिया। और राजकुमार और बंदर से कहा कि छत पर जाकर छिप जाएं। वे दोनों छत पर जाकर छिप गए।

दिन छिपते ही दानव घर लौटकर आया। आते ही उसको महसूस हुआ कि घर में मनुष्य की गंध समाई है। वो झट से अपने बेटी से बोला- बेटी मानुष गंध, मानुष गंध, मानुष गंध...

लड़की ने बात को टालते हुए कहा- क्या बाबा हर समय मानुष गंध-मानुष गंध करते रहते हो। दारू के नशे में तुमको बहका दिया। भला इस भयानक दानवों की नगरी में कोई मानव आ सकता है क्या?

दानव को बेटी की बात पर विश्वास हो गया। उसने खाना खाया और जाकर सो गया।

जिस कमरे में दानव सो रहा था, उसमें छत से एक मोखला खुलता था। छत पर बैठे बंदर ने जैसे ही दानव को नीचे सोते हुए देखा उसको शरारत सूझी। उसने राजकुमार से कहा- राजकुमार मुझको सू सू आई है।

राजकुमार बोला- ससुरे यहां हमारी जान के लाले पड़े हैं, और तुझे सू सू आ रही है। जा जाकर पिछली दीवार पर कर ले।

बंदर बोला- नहीं मैं तो इसी मोखले में करूंगा।

राजकुमार बोला- अबे मरवाएगा क्या मुझे, कौन से जनम के बदले ले रहा है तू मुझसे।

बंदर बोला- या तो मुझे करने दे या फिर पेट फाड़ निकाल मेरी चने की दाल।

राजकुमार बोला- चने की दाल के बदले में क्या मेरी जान लेगा, कमबख्त।

बंदर बोला- सोच ले।

राजकुमार ने कहा- जो जी में आए कर ले।

बंदर झट से गया और मोखले में सू सू कर दी।

सू सू नीचे सो रहे दानव के मुंह पर जाकर गिरी।

दानव हड़बड़ा कर उठा और जोर से चिल्लाया- बेटी मानुष गंध, मानुष गंध, मानुष गंध....

लड़की ने बात संभाली- बापू तुमको भी न सपने आ रहे हैं। मैंने छत पर पानी का मटकी रख दी थी, वही गिर गई होगी हवा से।

दानव फिर सो गया। ऊपर बैठे राजकुमार ने राहत की सांस ली।

बंदर को इस पर चैन नहीं आया और वो राजकुमार से बोला- राजकुमार मुझे खांसी आ रही है।

राजकुमार खबराकर बोला- अगर तूने जरा सी भी आवाज की तो ये दानव हम दोनों को खा जाएगा। चुपचाप अपना मुंह बंद करके बैठा रह।

बंदर बोला- खांसी को कैसे रोकूं।

राजकुमार बोला- अच्छा तो जा पीछे की तरफ मुंह करना और मुंह पर हाथ रखकर आहिस्ते से खांसना।

बंदर बोला- न जी न, खांसूंगा तो इसी मोखले में।

राजकुमार- अबे कमबख्त ये क्यों नहीं कहता कि तू मेरी जान लेना चाहता है।

बंदर बोला- या तो मुझे खांसने दे या फिर ला मेरी चने की दाल।

राजकुमार बोला- पता नहीं कौन सी बुरी घड़ी थी कि मैंने तेरी चने की दाल खा ली। जा मर, और मुझे भी मरवा दे।

बंदर गया और मोखले में मुंह लगाकर जोर से खांसा- खौं खौं खौं....

आवाज सुनते ही दानव उठ खड़ा हुआ और बोला- बेटी अब मुझे मत रोकना घर के अंदर मानव घस आया है। मैं आज उसको खा जाऊंगा।

झट से दानव छत पर पहुंच गया, वहां अंधेरा हो रहा था। दानव को अंधेरे में कुछ खास नजर नहीं आ रहा था। राजकुमार पहले ही जाकर छिप गया था। बस बंदर ही सामने था, जिसकर परछांई हल्की सी रोशनी में बहुत बड़ी नजर आ रही थी।

उसने अंदाजे से पूछा- तू कौन?

बंदर ने जवाब में पूछा- पहले बता तू कौन?

दानव बोला- मैं दानव!

बंदर बोला- तू दानव, तो मैं सवा दानव।

दानव ने पूछा- सवा दानव भला कैसे?
बंदर ने कहा जानना चाहता है कैसे, तो तुझे अभी बताता हूं। चल मेरे ऊपर थूक।

दानव ने बंदर के ऊपर थूका। बंदर को पता भी नहीं चला।

ले अब तू मेरा थूक संभाल। और बंदर ने दही का वो मटका जो रास्ते में छीना था, उठाकर दानव के ऊपर उड़ेल दिया।

दानव घबरा गया। इतना सारा थूक।

बंदर बोला- ये तो मैंने एक गाल से थूका है अगर दोनों गालों से थूक दिया तो यहां बाढ़ आ जाएगी। चल अब मुझे अपनी पूंछ से मार।

दानव ने अपनी पूंछ से बंदर पर प्रहार किया। बंदर पर खास फर्क नहीं पड़ा।

बंदर बोला ले अब मेरी पूछ संभाल और उसने रास्ते में छीनी जंजीर को पूरी ताकत से घुमाकर दानव की कमर में जड़ दिया। जंजीर का प्रहार पड़ते ही दानव बिलबिला गया।

बंदर बोला देख ली मेरी पंूछ की ताकत। चल अब अपनी जूं मेरे ऊपर फेंक।

दानव ने अपने सिर से एक जूं निकाली और बंदर के ऊपर फेंकी। बंदर को पता भी नहीं चला।

फिर बंदर बोला ले अब मेरी जूं देख और उसने रास्ते में छीना बकरी का बच्चा दानव की तरफ उछाल दिया। इतनी बड़ी जूं देखकर दानव बुरी तरह घबरा गया।

बंदर बोला चल अब मुझे अपना पेट बजाकर दिखा। दानव ने पेट बजाया, तो खास आवाज नहीं आई।

बंदर बोला ले अब मेरे पेट की आवाज सुन और रास्ते में छीना ढोल जोर से बजा दिया- ढोल की आवाज सुनकर दानव बुरी तरह घबरा गया और वहां से जान बचाकर भागा।

अगले दिन उस दानव ने अपने नगर में एक सभा बुलाई ये बताने के लिए कि नगर में एक ’’सवा दानव’’ घुस आया है।

इधर राजकुमार ने उस लड़की से भागने का रास्ता पूछा।

लड़की ने कहा कि रास्ता तो वो बताएगी, लेकिन वो भी साथ चलेगी। राजकुमार तैयार हो गया। लड़की ने अपने पिता की जादूई चटाई दिखाई जो हवा में उड़ती थी। वो राजकुमार, बंदर और घोड़े को लेकर उस चटाई पर सवार हो गई और सब हवा में उड़ने लगे।

बंदर ने ऊपर से देखा कि सारे दानव नीचे सभा कर रहे हैं। उसने जोर से अपनी ढोलक बजाई। उसकी आवाज सुनते ही सारे दानव घबराकर भागे, इधर-उधर, लदर-पदर, गिरते-पड़ते, किसी की धोती खुली, किसी कि जूती छूटी।

राजकुमार बंदर और उस लड़की के साथ अपने महल में आ गया। बंदर को रहने के लिए उसने एक अलग जगह दी और लड़की को अपनी रानी बना लिया।

Friday, June 7, 2013

खिचड़ी बना दी

एक बार शेखचिल्ली अपनी ससुराल गए। ससुराल में उनकी सास उनसे प्यार तो करती थीं, पर एक नंबर की कंजूस थीं। उन्होंने शेखचिल्ली के लिए बहुत सारे पकवान न बनाकर उनके लिए सिर्फ खिचड़ी बनाई। खिचड़ी अभी बन ही रही थी कि शेखचिल्ली रसोई में पहुंच गया और बातें करने लगा। बातों-बातों में शेखचिल्ली का हाथ ऊपर रखे घी के डिब्बे से टकरा गया और पूरा डिब्बा खिचड़ी में गिर गया। पूरा एक किलो घी खिचड़ी में समा गया। शेखचिल्ली की कंजूस सास को बहुत गुस्सा आया। लेकिन कुछ कहते नहीं बना। सास के मन में ख्याल आया कि अगर वो सारी खिचड़ी शेखचिल्ली को दे देती है तो सारा घी उसके हाथ से निकल जाएगा। उसको जरा सा घी भी खाने को नहीं मिलेगा। सो, सास ने एक तरकीब सोची। जैसे ही शेखचिल्ली खिचड़ी खाने चारपाई पर बैठा तो सास ने झट से कहा- दामाद जी हमारे यहां रिवाज है कि सास और जमाई एक ही थाली में खाना खाते हैं। शेखचिल्ली ने सास को अपने सामने चारपाई पर बैठा लिया। सास का वजन शेखचिल्ली से ज्यादा था, इसलिए थाली सास की तरफ झुक गई और खिचड़ी का ज्यादातर घी बह कर उसकी तरफ पहुंच गया।

खिचड़ी में जब एक किलो घी पड़ा हो तो उसके स्वाद के क्या कहने। शेखचिल्ली को खिचड़ी इतनी पसंद आई कि वो अपनी सास के गुणगाान करने लगा। शेखचिल्ली ने अपनी सास से पूछा ये जो आपने मुझे खिलाया इसका नाम क्या था, मैं घर जाकर इसे ही बनवाउंगा। सास ने बताया कि इसे खिचड़ी कहते हैं।

शेखचिल्ली को लगा कि रास्ते में वो इसका नाम न भूल जाए सो वो चलते-चलते उसका नाम रटने लगा- खिचड़ी, खिचड़ी, खिचड़ी, खिचड़ी, खिचड़ी......

खिचड़ी-खिचड़ी रटते हुए उसे रास्ते में उसे लघुशंका लगी। वो जैसे ही लघुशंका करके उठा। वो खिचड़ी की जगह खाचिड़ी-खाचिड़ी रटने लगा।

जब वो खाचिड़ी खाचिड़ी करता हुआ जा रहा था, तो रास्ते में एक किसान अपने खेत की चिडि़या उड़ा रहा था। जैसे उसने शेखचिल्ली के मुंह से खाचिड़ी खाचिड़ी सुना उसको बहुत गुस्सा आया। उसने झट से शेखचिल्ली को पकड़ा और उसको गरियाते हुए बोला- मैं यहां सुबह से चिडि़या उड़ाते-उड़ाते थक गया और तू बोल रहा है खाचिड़ी-खाचिड़ी। बेवकूफ तुझे बोलना चाहिए उड़चिड़ी-उड़चिड़ी।

शेखचिल्ली अब उड़चिड़ी-उड़चिड़ी बोलने लगा और बोलते-बोलते आगे चल दिया।

जब शेखचिल्ली उड़चिड़ी रटते हुए जा रहा था तो एक तालाब के किनारे एक आदमी ने मछली पकड़ने के लिए कांटा डाला हुए था। जब उसने शेखचिल्ली के मुंह से उड़चिड़ी-उड़चिड़ी सुना तो उसको बहुत गुस्सा आया। उसने झट से शेखचिल्ली को पकड़ लिया और दो चमाट मारते हुए बोला- अबे मैं सुबह से यहां बैठा मछली पकड़ने की कोशिश कर रहा हूं और तू बोल रहा है उड़चिड़ी-उड़चिड़ी। तुझे तो ये बोलना चाहिए- ‘आते जाओ फंसते जाओ, आते जाओ फंसते जाओ’।

अब शेखचिल्ली वही बोलने लगा और बोलते हुए आगे चल दिया।

जब शेखचिल्ली ‘आते जाओ फंसते जाओ’ रटता हुआ जा रहा था तो उधर से कुछ चोर चोरी करने के इरादे से जा रहे थे। जैसे ही उन्होंने शेखचिल्ली के मुंह से सुना ‘आते जाओ फंसते जाओ’ तो उनको बहुत गुस्सा आया। उन्होंने उसको पकड़कर पीटा और कहा कि एक तो हम चोरी करने जा रहे हैं और तू बोल रहा है कि आते जाओ फंसते जाओ। तुझको तो बोलना चाहिए- ‘आते जाओ रखते जाओ...’

अब शेखचिल्ली वही रटने लगा, जो उसे बताया गया और आगे चल दिया।

जब शेखचिल्ली ‘आते जाओ रखते जाओ’ रटता हुआ जा रहा था तो रास्ते में श्मशान घाट पड़ा वहां कुछ लोग एक मुर्दा लेकर आए थे। जैसे ही उन्होंने शेखचिल्ली के मुह से सुना आते जाओ रखते जाओ, तो उन सबको बहुत गुस्सा आया और उन्होंने शेखचिल्ली को पकड़कर खूब पीटा। और कहा मनहूस क्यों ऐसी मनहूसियत की बातें कर रहा है तुझे तो ये बोलना चाहिए- जैसा यहां हुआ वैसा कहीं न हो, जैसा यहां हुआ वैसा कहीं न हो।

अब शेखचिल्ली यही बात रटता हुआ आगे चल दिया।

जब तो ये बात रटते हुए आगे बढ़ रहा था तो रास्ते में एक राजा के बेटे की बारात जा रही थी। जैसे ही लोगों ने शेखचिल्ली के मुंह से सुना कि जैसा यहां हुआ वैसा कहीं न हो, तो बारातियों को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने शेखचिल्ली को पकड़कर पीटना शुरू कर दिया। उन्होंने उससे कहा कि ऐसे शुभ काम में भी तू ऐसी मनहूस बातें कर रहा है। तुझे तो ये बोलना चाहिए जैसा यहां हो वैसा सबके यहां हो।

अब शेखचिल्ली यही बात बोलता हुआ आगे चल दिया। और चलते चलते अपने घर पहुंच गया।

घर पहुंचते पहुंचते वो खिचड़ी का नाम पूरी तरह भूल गया। घर पर उसकी पत्नी मिली उसने अपनी मां के हाल चाल पूछे। हाल चाल बताने के बाद शेखचिल्ली ने अपनी पत्नी को प्यार से पास बुलाया और बोला- सुनो, आज तुम हमको वही बनाकर खिलाना जो तुम्हारी मां ने हमें खिलाया था।

पत्नी खुश होकर बोली- अरे इसमें क्या बात है, बना दूंगी, तुम ये बताओ कि मां ने क्या खिलाया था।

अब शेखचिल्ली को खिचड़ी का नाम याद न आए। वो बस पत्नी से अकड़कर बोला- ये सब मैं कुछ नहीं जानता, मुझे तो केवल वही खाना है जो तुम्हारी मां ने मुझे खिलाया।

पत्नी हैरान और परेशान होकर बोली- बनाउंगी तो तब जब मुझे ये पता चलेगा कि मां ने बनाया क्या था?

शेखचिल्ली को गुस्सा आ गया और वो पत्नी से झगड़ने लगा। पत्नी को भी गुस्सा आ गया और वो भी जवाब देने लगी।

दोनों में खूब बहस हुई और बात हाथापाई पर पहुंच गई। शेखचिल्ली ने अपनी बीवी को धुनाई शुरू कर दी। बीवी चिल्लाती हुई घर के बाहर निकल आईं। शेखचिल्ली उसको बाहर घर के चैक पर पीटने लगा। पत्नी का बुरा हाल हो गया। लेकिन शेखचिल्ली का हाथ नहीं रुका।

शोर सुनकर अड़ोसी-पड़ोसी बाहर निकल आए और तमाशा देखने लगे। तभी उन लोगों में एक बुढि़या बोली- हाय रे नाश हो तेरा... बेचारी बहू को मारते-मारते उसकी खिचड़ी बना दी।

खिचड़ी का नाम सुनते ही शेखचिल्ली का दिमाग चैंका और वो बोला- वही तो मैं कह रहा था इससे बनाने के लिए। इत्ती देर से सुन ही न रही है बात को।

बीवी बोली अरे मेरे खसम पहले ही बता देते कि तुमको खिचड़ी खानी है तो मैं तुम्हें पहले ही पका कर खिला देती।

खैर दोनों मिया-बीवी घर के अंदर आए। पत्नी ने खिचड़ी बनाई और दोनों में मिलकर खाई। लेकिन शेखचिल्ली को उतना स्वाद नहीं आया जितना सास की खिचड़ी में आया था।

Monday, June 3, 2013

चुहिया और मेंढकी

एक बार एक मेंढकी को अपनी सहेली चुहिया की बहुत याद आई। उसने सोचा कि बहुत दिन हुए सहेली से मिले, क्यों न चुहिया के घर जाकर उसके हालचाल ले लिया जाएं। सो मेंढकी अपने तालाब से निकली और चुहिया के बिल पर जाकर दरवाजा खटखटाया।

चुहिया अचानक अपनी पुरानी सहेली को देखकर बहुत खुश हुई। वो खुशी-खुशी मेंढकी को अपने बिल में ले गई। दोनों सहेलियों ने खूब गप्पें लड़ाईं। चुहिया ने अपनी सहेली मेंढकी के लिए लजीज खाना बनाया। पूरा बिल खाने की खुशबू से महक उठा।

तभी मेंढकी ने अपनी सहेली से पूछा- ‘जीजा जी कहीं नजर नहीं आ रहे क्या कहीं बाहर गए हैं?’

इस पर चुहिया ने बताया- ‘वो बाहर बैठक में गए हैं। वहां चूहा समाज के लोग उनसे मिलने आए हैं। तुम चाहो तो जाकर उनको बुला लाओ। फिर मिलकर खाना खाएंगे।’

मेंढकी फुदकती हुई बैठक की ओर चल दी। वहां जाकर देखा तो वहां तमाम चूहे बैठक में बैठे थे।

मेंढकी ने आव देखा न ताव और अपने जीजा को छेड़ने के अंदाज में बोली- ‘ओ रे मूसा कोटी काटा, रूई बिगाड़ा, घर चल जल्दी घर चल।’

चूहे भरे समाज में इस तरह सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने गुस्से में जवाब दिया- ‘नाक की नकटी, कान की बूची घर जा ससुरी घर जा।’

ये सुनकर मेंढकी शर्म से पानी-पानी हो गई। और तमतमाती हुई वापस आकर जोर-जोर से रोने लगी।

उसकी सहेली चुहिया ने उससे पूछा- ‘क्या हुआ बहन ऐसे क्यों रो रही हो?’

मेंढकी ने जवाब दिया- ‘बहन तुम्हारे पति ने मेरा इतना अपमान किया है कि अब मैं जीना नहीं चाहती।’

चुहिया ने पूछा - ‘ऐसा क्या कह दिया मेरे पति ने।’

मेंढकी ने वो बात चुहिया को सुनाई जो चूहे ने उसको बोली थी।

चुहिया को सुनकर हैरानी हुई। उसने पूछा अब ये बताओ कि तुमने उनसे क्या कहा था?

मेंढकी ने वो बात भी बताई जो उसने बोली थी।

चुहिया को समझते देर न लगी। उसने मेंढकी से कहा कि तुमने भरे समाज में मेरे पति के लिए अच्छे शब्दों को प्रयोग नहीं किया। तुमको भी सही भाषा का प्रयोग करना चाहिए था। पहली गलती तुमने की।

इस पर मेंढकी शर्मिंदा हुई। उसने फिर अपनी सहेली से पूछा कि फिर किस तरह वो अपने जीजा को बुलाए।

तो चुहिया ने उसको बताया कि अब जाकर इस तरह बुलाना- ‘भूरे दंत, कपूरे कंत, घर चलो बालम घर चलो।’

मेंढकी फिर फुदकती हुई बैठक की ओर गई और वहां जाकर बोली- ‘भूरे दंत, कपूरे कंत, घर चलो बालम घर चलो।’

चूहे को मेंढकी का ये अंदाज पसंद आया और उसने कहा- ‘धूप पड़त है घाम पड़त है, घर चलो सजनी, घर चलो।’

दोनों जीजा-साली खुशी-खुशी घर आए। चुहिया ने सबको स्वादिष्ट खाना परोसा। फिर शाम को अपनी सहेली को विदा किया।

बड़बोली चिडि़या

एक राजा के महल में पिलखुन का पेड़ था। उस पेड़ पर एक चिडि़या अपना घोंसला बनाकर रहती थी। एक बार उस चिडि़या को कहीं से कानी कौड़ी मिल गई। चिडि़या ने उस कानी कौड़ी को लाकर अपने घोंसले में रख लिया और अपनी इस धरोहर पर इतराने लगी।

चिडि़या हर रोज सुबह उठती और गाना शुरू कर देती- जो हम पै, सो काहु पै न... जो हम पै, सो काहु पै न...।

रोज-रोज चिडि़या का गाना सुनकर महल के लोग तंग आ गए। महल के राजा ने अपने सिपाहियों को हुकुम दिया- ‘‘जाओ, जाकर देखकर आओ, ऐसा क्या है इस चिडि़या के पास जो किसी के पास नहीं है!’’

राजा के सिपाही दौड़कर गए, पेड़ पर चढ़े और चिडि़या के घोंसले में झांककर देखा। उसमें एक कानी कौड़ी रखी थी। उस कौड़ी को देखकर सिपाही खूब हंसंे

वो लौटकर आए और आकर सारी बात राजा को बताई। राजा को भी सुनकर बहुत हंसी आई। अभी राजा हंस ही रहा था कि चिडि़या ने फिर गाना शुरू कर दिया- जो हम पै, सो काहु पै न... जो हम पै, सो काहु पै न...।

राजा को चिडि़या का ये शेखी गान सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने अपने सैनिकों से कहा- ‘जाओ और जाकर इस चिडि़या की कानी कौड़ी उठा लाओ’। सैनिक दौड़े-दौड़े गए और चिडि़या के घोंसले से कानी कौड़ी उठा लाए।

चिडि़या जब शाम को लौटी, तो उसने अपने घोंसले में कानी कौड़ी न पाकर इस तरह रोना शुरू कर दिया- ‘‘राजा कंगाल हमारी कानी कौड़ी ले गए, राजा कंगाल हमारी कानी कौड़ी ले गए।’’

राजा को चिडि़या का इस तरह आरोप लगाना बेहद नगवार गुजरा। उसने झुंझलाहट में अपने सैनिकों से कहा ‘‘जाओ उस ससुरी की कानी कौड़ी वापस रख आओ।’’

सैनिक दौड़े-दौड़े गए और चिडि़या की कानी कौड़ी वापस रख आए।

चिडि़या जब शाम को लौटी तो अपनी कानी कौड़ी वापस पाकर जोर-जोर से चिल्लाने लगी- ‘‘राजा डरपोंक हमारी कानी कौड़ी दे गए.... राजा डरपोंक हमारी कानी कौड़ी दे गए...।’’

चिडि़या के इस आरोप ने राजा को बेहद गुस्से से भर दिया। उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया- ‘जाओ इस बड़बोली चिडि़या को भालों से छेद दो।’

सैनिक अपना भाला लेकर गए और जाकर चिडि़या को भालों से छेद दिया। चिडि़या बुरी तरह घायल हो गई।

उसके घावों से खून बहने लगा। खून को देखकर चिडि़या ने गाना शुरू किया- ‘हमें लाल लंगोटा पाए जी, हमें लाल लंगोटा पाए जी...।’

फिर दो दिन बाद उसके घावों में पस पड़ गया। इस पर चिडि़या ने गाना गया- ‘हमें दही के मटके पाए जी, हमें दही के मटके पाए जी...।’

चिडि़या जब मरणासन्न हो गई तो उसको हिचकी आने लगी। तो चिडि़या ने गाया- ‘हमें राम झटोका आए जी, हमें राम झटोका आए जी....।’

और आखिरकार वो चिडि़या मर गई।