Saturday, July 27, 2013

शेखचिल्ली और कंजूस सेठ

एक बार कि बात है कि एक गांव कंजूस सेठ रहता था। उसकी कंजूसी के चर्चे दूर-दूर तक मशहूर थे। उसके पास कोई भी जाना पसंद नहीं करता था। पड़ोस के एक गांव से एक युवक उस सेठ के पास नौकरी मांगने आया।

सेठ ने कहा- नौकरी तो तुमको मिल जाएगी, लेकिन मेरी एक शर्त है, अगर तुम शर्त मानते हो तो काम मिलेगा वरना नहीं।

उस युवक ने सेठ से शर्त पूछी।

सेठ ने कहा- तुमको सुबह से लेकर शाम तक काम करना होगा। जो भी काम कहा जाएगा, वो करोगे। उसके बदले तुमको दो रुपये महीना और दिन में एक बार भोजन मिलेगा, वो भी किसी पेड़ के पत्ते पर पूरा भरकर। इस पर भी अगर तुम काम छोड़ कर गए तो मैं तुम्हारे नाक-कान काट लूंगा और अगर मैं तुमको निकालता हूं तो तुम मेरे नाक-कान काट सकते हो। बोलो शर्त मंजूर है।

युवक मजबूर था, उसने सेठ की शर्त मंजूर कर ली।

इसके बाद युवक सेठ के यहां रहकर काम करने लगा। कंजूस सेठ उस युवक से जमकर काम लेता। घर का काम, बाजार का काम, खेत का काम। युवक जब थक कर चूर हो जाता तो शाम को अपने लिए एक बर्गद के पेड़ का पत्ता तोड़ता और उस पर खाना मांगता। बर्गद के छोटे से पत्ते पर जरा सा खाना आता। पूरा पत्ता भरकर खाने के बावजूद वह भूखा रह जाता। धीरे-धीरे उस युवक की तबियत खराब होने लगी। बिना खाए काम करते-करते उसका शरीर कमजोर हो गया। एक-दो महीने के बाद उसके अंदर काम करने की ताकत खत्म हो गई। लेकिन अगर वो काम छोड़ता है तो उसको सेठ के हाथों अपने नाक-कान कटवाने पड़ेंगे। इस डर से वो काम करता रहा।

लेकिन एक दिन उसको लगा कि अगर वो इसी तरह काम करता रहा तो वो मर जाएगा, और मरने से अच्छा है कि अपने नाक-कान कटवा लिए जाएं। इसलिए हारकर उसने सेठ से कहा- सेठ जी मैं काम छोड़ना चाहता हूं।

सेठ ने ये बात सुनने पर अपनी शर्त दोहराई। युवक ने कहा- जैसा आप चाहो वैसा करो, लेकिन मुझे इस नौकरी से मुक्ति दो।

सेठ ने चाकू से उस युवक के नाक काम काट लिए और उसको काम से निकाल दिया।

नाक-कान कटवाकर अपने घर पहुंचा। घर पर उसके भाई शेखचिल्ली ने जब बड़े भाई की हालत देखी तो उसको बहुत गुस्सा आया। उसने पूछा- तुम्हारी ये हालत किसने की?

युवक ने अपनी पूरी कहानी शेखचिल्ली को सुना दी।

शेखचिल्ली बोला- तुम चिंता मत करो भैया मैं उस सेठ से तुम्हारा बदला लूंगा।

शेखचिल्ली ने कमर कसी और उस सेठ के पास नौकरी मांगने पहुंच गया। उसने सेठ को ये नहीं बताया कि वो उस युवक का भाई है जिसके सेठ ने नाक कान काटे हैं।

सेठ ने शेखचिल्ली के सामने भी वही शर्त दोहरा दी। शेखचिल्ली ने सेठ की पूरी शर्त मान ली।

अगले दिन से शेखचिल्ली का काम शुरू हो गया। सेठ ने पहले दिन शेखचिल्ली से कहा- जा, जाकर बैलों को पानी दिखा लो।

शेखचिल्ली गया और दोनों बैलों को तालाब के किनारे खड़ा करके लौटा लाया। शाम तक बैलों का प्यास के कारण बुरा हाल हो गया और उनमें से एक बैल मर गया।

सेठ ने शेखचिल्ली से पूछा- ये बैल हांफते-हांफते मर कैसे गया? क्या तुमने इनको पानी नहीं पिलाया था?

शेखचिल्ली ने कहा- नहीं तो!

सेठ ने पूछा- फिर मैंने तुमको किसलिए भेजा था इन्हें लेकर?

शेखचिल्ली ने कहा- आपने बोला था कि पानी दिखा ला, सो मैं पानी दिखाकर लौटा लाया।

सेठ ने कहा- हाय मेरे कर्म! अबे गधे, जब कोई काम कहा जाए तो एक काम बढ़कर करना चाहिए एकदम बातों पर नहीं जाना चाहिए। समझा!

इसके बाद शेखचिल्ली का खाने का समय हो गया। वो जंगल में गया और अपने लिए एक बड़ा सा केले का पत्ता तोड़ लाया।

सेठ ने पूछा- ये क्या है?

शेखचिल्ली बोला- पत्ता है सेठ जी। खाना दो। पूरा भरकर।

सेठ का सनाका निकल गया। खैर शर्त के मुताबिक उसको खाना देना पड़ा। पत्ता इतना बड़ा था कि उसको भरते-भरते घर का खाना खत्म हो गया। शेखचिल्ली ने पूरा पत्ता भरकर दाल-चावल खाए।

अगले दिन सेठ ने एक नया बैल खरीदा और शेखचिल्ली को आदेश दिया- जा आज इन दोनों को पानी जरूर पिला देना। इसके बाद हल लेकर पूरा खेत जोत आना। वहां से जब शाम को वापस लौटे तो शिकार करके थोड़ा गोश्त ले आना। घर में खाना पकाने की लकडि़यां खत्म हो गई हैं, लौटते समय लकडि़यां भी लेते आना।

शेखचिल्ली हल और बैल लेकर खेतों पर चला गया। खेत की जुताई करने के बाद वो थक गया। ईंधन की लकडि़यों के लिए उसने हल को ही काटकर छोटे-छोटे टुकड़े कर दिये। जब गोश्त के लिए कोई शिकर नहीं मिला तो उसने सेठ के कुत्ते को काटकर गोश्त निकाल लिया।

शाम को शेखचिल्ली सारा सामान और अपना केले का पत्ता लेकर सेठ के घर पहुंच गया। सेठ की बीवी ने खाना पकाया।

जब खाना खाने का समय आया तो शेखचिल्ली ने कहा- मैं केवल दाल-चावल खाऊंगा, मैं मांस नहीं खाता।

शेखचिल्ली को केले के पत्ते पर दाल-चावल दे दिये गए।

सेठ ने जब पका हुआ गोश्त खाने के बाद बोटी डालने के लिए अपने कुत्ते को आवाज लगाई तो कुत्ता नहीं आया। बार-बार बुलाने पर भी जब वो नहीं आया तो सेठ को हैरानी हुई, उसने शेखचिल्ली से पूछा- आज शेरू कहां है।

शेखचिल्ली ने कहा- जब मुझे कोई शिकार नहीं मिला तो मैंने शेरू को काटकर गोश्त निकाल लिया।

सेठ को बहुत गुस्सा आया। वो खूब चिल्लाया। पर शेखचिल्ली पर कोई असर नहीं पड़ा।

अगले दिन सेठ ने जब शेखचिल्ली से खेत जोतने के लिए कहा तो शेखचिल्ली बोला- खेत तो जोत दूं, लेकिन हल कहां है?

सेठ ने पूछा- क्यों हल कहा गया? कल ही तो तू लेकर गया था।

शेखचिल्ली बोला- अरे मुझे ईंधन के लिए लकडि़यां नहीं मिल रही थीं, इसलिए हल को काटकर ही तो कल मैं ईंधन जुटा कर लाया।

सेठ ने अपना माथा धुन लिया। एक तो इतने बड़े पत्ते पर खाना खाता है। ऊपर से सारे काम बिगाड़ता है। सेठ को लगा कि नया नौकर उसको बहुत महंगा पड़ रहा है। वो सोचने लगा कि आखिर कौन सी घड़ी में उसने शेखचिल्ली को अपने यहां काम पर रखा।

कुछ दिन बाद सेठ की सेठानी बीमार पड़ गई। सेठ ने शेखचिल्ली से कहा जा पड़ोस के गांव जाकर वैध जी को खबर कर दे कि आकर दवा-दारू कर देंगे।

शेखचिल्ली ने अपना गमछा उठाया और पड़ोस के गांव में जाकर वैध जी को खबर कर दी। वैध जी अपनी दवाओं का झोला लेकर सेठ के यहां चल दिया। लौटते वक्त शेखचिल्ली ने पूरे इलाके में खबर कर दी कि सेठ की सेठानी मर गई है। सेठ के बाग में जाकर ढेर सारी लकडि़यां काट डाली और बैल गाड़ी में भरकर सेठ के घर पहुंच गया। वहां सेठानी की मौत कर खबर सुनकर पूरा गांव सेठ के यहां जमा हो गया था।

सेठ सबको समझा रहा था कि सेठानी मरी नहीं है, बस थोड़ा बीमार है। इतने में वहां शेखचिल्ली लकडि़यों से भरी बैलगाड़ी लेकर वहां पहुंच गया।

सेठ ने पूछा- अरे कमबख्त अब ये लकडि़यां क्यों उठा लाया?

शेखचिल्ली ने पूछा- क्यों सेठ जी। सेठानी को फूंकने के लिए लकडि़यों की जरूरत नहीं पड़ेगी क्या?

सेठ का चेहरा तमतमा रहा था- अबे फूंकुंगा तो तब जब वो मरी होगी, अभी तो वो जिंदा।

शेखचिल्ली बोला- तो थोड़ी-बहुत देर में मर जाएंगी।

सेठ को बहुत गुस्सा आया- मैं तेरा सिर फोड़ दूंगा। ये सब तू मेरे साथ क्यों कर रहा है?

शेखचिल्ली बोला- आप ही ने तो कहा था कि एक काम बढ़कर करना चाहिए। इसलिए जब आपने मुझे बताया कि सेठानी जी बीमार हैं, तो मुझे लगा कि बीमार हैं, तो मर भी जाएंगी, फिर आप मुझ से कहोगे कि गांव भर में खबर कर दो, इसलिए मैंने पूरे गांव में खबर कर दी। फिर आप बोलते कि फूंकने के लिए लकडि़यां ले आओ इसलिए मैं आपका बाग काटकर लकडि़यां ले आया। अब बताओ मैंने क्या गलत किया?

अपना चहेता बाग कटने की बात सुनते ही सेठ का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और वो शेखचिल्ली को गालियां बकने लगा। उसने कहा कि जा दूर हो जा मेरी नजरों, मुझे नहीं कराना तुझ से कोई काम।

शेखचिल्ली बोला- चला तो मैं जाऊंगा, लेकिन आपको शर्त याद है न। अपने नाक-कान मुझे दे दो। क्योंकि अब आप मुझे निकाल रहे हो, मैं खुद नहीं जा रहा। और शेखचिल्ली ने सेठ के नाक कान काट लिये।

सेठ के नाक-कान शेखचिल्ली ने अपने गांव जाकर अपने भाई को दिखाए तो सब बहुत खुश हुए।

Tuesday, July 16, 2013

चिडि़या और गेहूं का दाना

एक बार एक चिडि़या को गेहूं का एक दाना मिला। चिडि़या उसको खाने के लिए एक खूंटे पर जाकर बैठी। उसने दाने को खाने के लिए खूंटे पर रखा, लेकिन खूंटा थोड़ा चिरा हुआ था। दाना उस पर रखते ही खूंटे के अंदर समा गया। चिडि़या ने खूब चोंच मारी लेकिन गेहूं का दाना उससे नहीं निकला। वो बहुत दुःखी हुई। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे उस दाने को खूंटे से निकाला जाए। तभी उसको बढ़ई के पास जाने का ख्याल आया।

चिडि़या उड़ती हुई बढ़ई के पास पहुंची और बढ़ई से बोली- बढ़ई चाचा तुम खूंटे को चीर दो।

बढ़ई ने पूछा- क्यों?

चिडि़या बोली- खूंटे में मेरा दाना गिर गया है। तुम खूंटा चीर दोगे तो मैं उसमें से अपना दाना निकाल लूंगी।

बढ़ई ने कहा- खूंटे ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं खूंटे को चीर दूं। जा नहीं चीरता।

चिडि़या को बहुत गुस्सा आया। वो उड़ते हुए राजा के पास गई और राजा से बोली- राजा! राजा! बढ़ई को सजा दो।

राजा बोला- बढ़ई ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं बढ़ई को सजा दूं।

फिर चिडि़या गई रानी के पास और रानी से बोली- रानी! रानी! तुम राजा से रूठ जाओ।

रानी बोली- राजा ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं राजा से रूठ जाऊं।

फिर चिडि़या गई चूहिया के पास और बोली- चुहिया! चुहिया! तुम रानी के कपड़े काट दो।

चुहिया बोली- रानी ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं रानी के कपड़े काट दूं।

फिर चिडि़या गई बिल्ली के पास और बोली- बिल्ली! बिल्ली! तुम चुहिया को मार दो।

बिल्ली बोली- चुहिया ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं चुहिया को मार दूं।

फिर चिडि़या गई कुत्ते के पास और बोली- कुत्ते! कुत्ते! तुम बिल्ली को मार दो।

कुत्ता बोला- बिल्ली ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं बिल्ली को मार दूं।

फिर चिडि़या गई डंडे के पास और बोली- डंडे! डंडे! तुम कुत्ते को मारो।

डंडा बोला- कुत्ते ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं कुत्ते को मारूं।

फिर चिडि़या गई आग के पास और बोली- अग्नि! अग्नि तुम डंडे को जला दो।

आग बोली- डंडे ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं डंडे को जला दूं।

फिर चिडि़या गई पानी के पास और बोली- पानी! पानी! तुम आग को बुझा दो।

पानी बोला- आग ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं आग को बुझा दूं।

फिर चिडि़या गई हाथी के पास और बोली- हाथी! हाथी! तुम पानी को अपनी सूंड़ से सोख लो।

हाथी बोला- पानी ने मेरा क्या बिगाड़ा जो मैं उसे सोख लूं।

चिडि़या हारकर निराश होकर बैठ गई। तभी उसके सामने एक चींटी आई। चींटी ने पूछा- तुम क्यों दुखी हो?

चिडि़या बोली अब मैं तुमको बताकर क्या करूंगी, जब बडे़-बड़े दिग्गज काम नहीं आए, तो तुम मेरे क्या काम आ पाओगी।

चींटी बोली- किसी को बहुत छोटा नहीं समझना चाहिए। तुम मुझको बताओ तो सही।

चिडि़या ने अपनी पूरी बात उसको बता दी।

चींटी बोली इसमें क्या है, मैं अभी जाकर हाथी की सूंड़ में घुस जाती हूं, फिर देखो वो तुम्हारा काम करता है कि नहीं?

जैसे ही चींटी हाथी के पास पहुंची, हाथी बोला- नहीं नहीं मेरी सूंड में मत घुसो, मैं अभी पानी को सोख लेता हूं।

जैसे ही हाथी पानी के पास गया, पानी बोला- नहीं-नहीं मुझे मत सोखो, मैं अभी आग को बुझा देता हूं।

जैसे ही पानी आग को बुझाने लगा, आग बोली- नहीं-नहीं मुझे मत बुझाओ, मैं अभी डंडे को जला देती हूं।

जैसे ही आग डंडे को जलाने लगी, डंडा बोला- नहीं-नहीं मुझे मत जलाओ, मैं अभी कुत्ते को पीटता हूं।

जैसे ही डंडा कुत्ते को पीटने गया, कुत्ता बोला- नहीं-नहीं मुझे मत पीटो, मैं अभी बिल्ली को काटता हूं।

जैसे ही कुत्ता बिल्ली को काटने गया, बिल्ली बोली- नहीं-नहीं मुझे मत काटो, मैं अभी चुहिया को पकड़ती हूं।

जैसे ही बिल्ली चुहिया को पकड़ने गई, चुहिया बोली- नहीं-नहीं मुझे मत पकड़ो मैं अभी रानी के कपड़े कुतरती हूं।

जैसे ही चुहिया रानी के कपड़े कुतरने लगी, रानी बोली- नहीं-नहीं मेरे कपड़े मत कुतरो, मैं अभी राजा से रूठ जाती हूं।

जैसे ही रानी राजा से रूठने लगी, राजा बोला- नहीं-नहीं मुझसे मत रूठो, मैं अभी बढ़ई को सजा देता हूं।

जैसे ही राजा बढ़ई को सजा देने लगा, बढ़ई बोला- नहीं महाराज मुझे सजा मत दो, मैं अभी खूंटे को चीरे देता हूं।

जैसे ही बढ़ई खूंटे को चीरने गया, खूंटा बोला- मुझे मत चीरो मैं अभी चिडि़या का दाना वापस किए देता हूं।

और खूंटे ने चिडि़या का दाना वापस कर दिया। चिडि़या बड़े प्यार से अपने दाने को चोंच में दबाया और उड़ गई।

Monday, July 15, 2013

शेखचिल्ली और परियां

शेखचिल्ली की बेरोजगारी से उसकी मां तंग आ गई थी। घर पर पड़े-पड़े राशन तोड़ने के सिवा शेखचिल्ली को कोई काम न था। घर से बाहर निकलता तो गांव वाले उसकी मजाक बनाते थे।

एक दिन उसकी मां ने शेखचिल्ली से कहा- यों निठल्लों की तरह दिन भर पड़े रहने से अच्छा है कि शहर जाकर कोई नौकरी खोज। क्या पता कोई नौकरी मिल ही जाए!

अगले दिन शेखचिल्ली की मां ने शेखचिल्ली के लिए एक कपड़े में चार रोटी और प्याज बांध दी और शेखचिल्ली को काम खोचने के वास्ते चलता कर दिया।

अब शेखचिल्ली ठहरे पूरे शेखचिल्ली। कामधाम तो क्या खोजते, रास्ते में एक जंगह पड़ा, वहीं एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगे।

नींद की एक झपकी निकालने के बाद उसने सोचा कि चलो रोटी खा ली जाए। शेखचिल्ली को नजदीक ही एक कुआं नजर आया। शेखचिल्ली जाकर सीधे उस कुएं की दीवार पर बैठ गया और कपड़े में बंधी रोटी और प्याज को खोला।

रोटियां देखकर शेखचिल्ली जोर से बोला- एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं या चारों खा जाऊं...

उस कुएं के अंदर चार परियां रहती थीं। उन्होंने जैसे ही शेखचिल्ली की आवाज सुनी, वो डर गईं, उनको लगा कि आज कोई उनको खाने आ गया है।

डर के घबराई परियां कुएं से बाहर निकल आईं और बोलीं- नहीं नहीं हमें मत खाओ, हमें मत खाओ, हम तुम्हारी मदद करेंगी, तुम जो मांगोगे वही तुमको देंगी।

शेखचिल्ली को कुछ समझ नहीं आया कि आखिर हुआ क्या? फिर उसने अपनी चार रोटियों से उन परियों की संख्या को जोड़ा और तब उसको समझ आया कि मामला क्या है।

खैर, उसको लगा कि परियां जब उसकी मदद करने को तैयार हैं तो क्यों न इन्हीं से कुछ मदद मांग ली जाए।

शेखचिल्ली ने कहा कि तुम सब मेरी क्या मदद कर सकती हो, मैं तो बेरोजगार हूं, मेरे पास न धन है और न नौकरी। घर में गरीबी का आलम है।

परियों ने कहा- कोई बात नहीं है हम तुमको एक ऐसी थैली दे देते हैं जिसमें से तुम जब चाहोगे तब पैसे निकाल पाओगे।

उनमें से एक परी ने अपनी छड़ी घुमाई और एक खूबसूरत मखमली थैली शेखचिल्ली को दे दी।

देखने में वो थैली खाली लग रही थी, लेकिन जैसे ही शेखचिल्ली ने उसमें हाथ डाला उसमें से उसे सोने की मोहरें मिलीं।

शेखचिल्ली बहुत खुशी-खुशी वापस अपने गांव लौटने लगा। लौटते वक्त रास्ते में अंधेरा हो गया।

उसने देखा कि नजदीक ही एक छोटा सा गांव है। वो उस गांव में गया और एक व्यापारी के घर पहुंचा। शेखचिल्ली ने उस व्यापारी से रात भर रुकने की जगह मांगी।

व्यापारी ने कहा- मेरा काम धंधा सब चैपट पड़ा हुआ है। मैं तुमको रुकने की जगह तो दूंगा, लेकिन बदले में तुम मुझे क्या दोगे।

शेखचिल्ली ठहरे पूरे शेखचिल्ली, फट से अपनी थैली व्यापारी को दिखाई और पूछा- तुमको कितना पैसा चाहिए, मैं तुमको उतना पैसा दे सकता हूं। मेरे पास ये जादूई थैली है। इसमें से जितने चाहो उतने पैसे निकाल सकते हो।

व्यापारी ने शेखचिल्ली से दस मोहरें मांगीं। शेखचिल्ली ने झट से अपनी थैली में से दस मोहरें निकाल कर दे दीं।

व्यापारी ने शेखचिल्ली को ठहरने की जगह दे दी। और शेखचिल्ली जाकर कमरे में पसर गया। लेकिन इधर व्यापारी के मन में लालच आ गया।

जैसे ही रात को शेखचिल्ली की आंख लगी, व्यापारी ने शेखचिल्ली की थैली बदल दी।

शेखचिल्ली सुबह उठा और खुशी-खुशी अपने गांव को चला।

घर पहुंचकर उसने अपनी मां से कहा- मां आज से हमारे बुरे दिन खत्म समझो। अब हमें कभी पैसे की कोई दिक्कत नहीं होगी। मुझे एक ऐसी थैली मिल गई है, जिसमें से जितने चाहो उतने पैसे मिल जाते हैं। बता तुझे कितने पैसे चाहिएं।

मां बोली- मुझे क्या पैसे चाहिए। बनिये की दुकान का उधार बढ़ता जा रहा है उसे चुकाने के लिए कुछ पैसे दे दे बस।

शेखचिल्ली ने कहा- बस इतनी सी बात ये लो अभी दिए देता हूं।

लेकिन शेखचिल्ली ने जैसे ही थैली में हाथ डाला उसमें से कुछ निकला ही नहीं। थैली एकदम खाली थी। शेखचिल्ली हक्का-बक्का रह गया।

उसकी मां ने अपना माथा पीट लिया। बोली- ऐसा बावला लड़का मिला है। भला ऐसे भी कहीं जादू की थैली होती है। चल जा यहां से मेरा वक्त बर्बाद मत कर।

मां को शेखचिल्ली की किसी भी बात का यकीन नहीं हुआ।

शेखचिल्ली बहुत दुखी हुआ।

अगले दिन मां ने फिर उसे चार रोटियां कपड़े में बांध कर रख दीं। शेखचिल्ली फिर घूमता-घामता उसी जंगल में पहुंचा और कुएं के पास बैठ गया।

जब भूख लगी तो उसने फिर अपनी पोटली खोली और लगा जोर से चिल्लाने- एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं या चारों खा जाऊं....

शेखचिल्ली की ये आवाज सुनकर परियां फिर डर गईं और कुएं से बाहर निकल आईं।

उन्होंने कहा- नहीं नहीं हमें मत खाओ, बोलो तुमको क्या चाहिए।

शेखचिल्ली ने कहा- क्या खाक चाहिए। कल तुमने जो थैली दी थी, उसने घर जाकर काम करना बंद कर दिया। उसमें से एक भी पैसा नहीं निकला। अब मेरे घर का चूल्हा कैसे जलेगा।

उनमें से दूसरी परी बोली- लो आज मैं तुमको एक कढ़ाई देती हूं। इस कढ़ाई को जाकर चूल्हे पर चढ़ा देना, फिर इसमें से जितना चाहो, जैसा चाहो खाना पकाना। इस कढ़ाई में खाना खुद पक जाता है, और तब तक खत्म नहीं होता जब तक तुम्हारी जरूरत खत्म न हो।

शेखचिल्ली ने कढ़ाई ले ली और घर की तरफ चल दिया। रास्ते में फिर अंधेरा हो गया। शेखचिल्ली फिर उसी व्यापारी के घर रात बिताने पहुंच गया।

व्यापारी को लगा कि आज भी इसके पास कोई खास चीज जरूर होगी। वो ढोंग करता हुआ बोला भैया व्यापार पूरी तरह डूबा हुआ है, आज तो मेरे घर में चूल्हा भी नहीं जला। बच्चे भूखे ही सो गए।

शेखचिल्ली को उस पर दया आ गई। वो बोला- भोजन का इंतजाम मैं किए देता हूं।

उसने झट से अपनी कढ़ाई निकाली और कई तरह के व्यंजन बनाकर व्यापारी को दे दिए।

व्यापारी ने सारे व्यंजन अपने घर में रख लिए और शेखचिल्ली को सोने के लिए कमरा दिखा दिया।

शेखचिल्ली जैसे ही कमरे में जाकर सोया, व्यापारी ने उसकी कढ़ाई बदल दी।

सुबह उठकर शेखचिल्ली जब अपने घर गया तो उसने खुशी-खुशी अपनी मां से कहा- मां आज से तेरी सारी चिंता खत्म। जितना चाहो उतना खाना पकाओ। वो भी बिना किसी मेहनत के। ये लो मेरी करामाती कढ़ाई।

लेकिन शेखचिल्ली ने जैसे ही कढ़ाई में खाना पकाने की कोशिश की उसमें से कुछ नहीं निकला।

उसकी मां ने फिर माथा पीट लिया, कि उसने भी कैसे बावले लड़के को जन्म दिया।

अगले दिन शेखचिल्ली की मां ने फिर से चार रोटी प्याज के साथ कपड़े में बांध दीं।

शेखचिल्ली फिर उसी कुएं पर जा पहुंचा और जाते ही बोला- एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं या चारों ही खा जाऊं...

कुएं में से फिर चारों परियां बाहर आईं और बोलीं- अब तुम हमें क्यों खाना चाहते हो, हमने तो तुमको खाने और कमाने के लिए सामान दे ही दिया।

शेखचिल्ली ने कहा- क्या खाक सामान दिया है, तुम्हारा दिया सामान घर जाकर काम नहीं करता। मेरी मां पर तन ढकने तक के कपड़े नहीं हैं और तुम हमारे साथ ऐसा मजाक कर रही हो।

उनमें से तीसरी परी बोली- तुम्हारे कपड़ों का बंदोबस्त मैं किए देती हूं।

उसने अपनी जादूई छड़ी घुमाई और उसके हाथ में एक खूबसूरत टोकरा आ गया।

उसने शेखचिल्ली से कहा- इस टोकरे में तुम जब भी हाथ डालोगे तुम्हें तुम्हारे काम के कपड़े मिल जाएंगे।

शेखचिल्ली ने वो टोकरा लिया और अपने गांव की ओर चल दिया। रास्ते में फिर अंधेरा हो गया तो वो फिर उसी व्यापारी के घर पहुंचा। व्यापारी तो पहले से ही उसका इंतजार कर रहा था। उसने शेखचिल्ली का बड़ा इस्तकबाल किया।

व्यापारी फिर से शेखचिल्ली के सामने अपना रोना रोने लगा। बोला- क्या बताऊं भाई, हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। घर में पहनने-ओढ़ने तक के कपड़े खत्म हो गए। बच्चे नंगे घूमते फिरते हैं। व्यापार चैपट हो गया। समझ नहीं आता क्या करूं।

शेखचिल्ली ने कहा तुम्हारे बच्चों और तुम्हारे पूरे परिवार के लिए मैं सालभर के कपड़े अभी दिए देता हूं।

उसने अपने टोकरे में हाथ डाला और तरह-तरह के कपड़े उसमें से निकाल दिए। सुंदर-सुंदर साडि़यां, कुर्ते-प्यजामे, बच्चों की फ्राॅक, सूट आदि आदि। व्यापारी बहुत खुश हुआ।

रात को जैसे ही शेखचिल्ली सोया, व्यापारी ने उसका टोकरा बदल दिया।

अगले दिन जब शेखचिल्ली अपने घर पहुंचा, तो जाते ही अपनी मां से बोला- मां बता तुझे कैसी साड़ी पहननी है।

मां बोली- अरे कमबख्त आजा आज तू, रोज-रोज नई-नई कहानी सुनाकर मेरा मन बहलाता है। तू निरा निखट्टू है। तेरे हाथ की साड़ी मेरे नसीब में नहीं है।

शेखचिल्ली ने कहा- नहीं, नहीं मां, मेरा यकीन कर मेरे पास ये जादूई टोकरा है। ये देख मैं तुझे अभी मलमल की एक साड़ी देता हूं।

शेखचिल्ली ने जैसे ही टोकरे में हाथ डाला उसमें से कुछ नहीं निकला।

उसकी मां को बहुत गुस्सा आया। उसने कहा- आज मैं तुझे नहीं छोडूंगी। नौकरी न मिले कोई बात नहीं। लेकिन रोज मुझे नई कहानी सुनाता है। ठहर जरा।

और मां ने अपनी झाडू उठाई लगी शेखचिल्ली पर बजाने। शेखचिल्ली को समझ नहीं आ रहा था, कि कैसे अपनी मां को समझाए।

अगले दिन फिर से उसकी मां ने चार रोटियां बांध दीं।

शेखचिल्ली गुस्से में लाल-पीला होता हुआ जंगल में उस कुएं पर पहुंचा और जोर से चिल्लाया- एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं या चारों खा जाऊं...

अंदर से चारों परियां निकल आईं, हमें मत खाओ, हम तुम्हारी मददगार हैं।

शेखचिल्ली पूरा गुस्से में था- उसने कहा, तुम और मददगार! तुमने जो मेरा मजाक उड़वाया है, मैं तुमको अब नहीं छोडूंगा। तुम्हारा दिया एक भी सामान घर पहुंचकर काम नहीं करता। बस उस व्यापारी के घर तक काम करता है।

परियों ने पूछा- कौन से व्यापारी के घर पर?

शेखचिल्ली ने बताया- वो जिसके घर मैं रास्ते में रात को रुकता हूं।

परियों को समझते देर नहीं लगी। उन्होंने शेखचिल्ली से कहा- ये सारी गड़बड़ उसी व्यापारी ने की है। तुम्हारा असली सामान उसने चुरा लिया और नकली तुमको दे दिया।

शेखचिल्ली को बात समझ में आई- तो फिर अब मैं क्या करूं?

उनमें से चैथी परी ने अपनी जादू की छड़ी घुमाई और उसके हाथ में एक डंडा आ गया।

परी ने वो डंडा शेखचिल्ली को दिया और बोली- ये जादूई डंडा है। झूठ बोलने वालों के सिर पर तब तक प्रहार करता रहता है जब तक कि वो सच न बोल दे। जाओ और जाकर व्यापारी को सबक सिखाओ।

शेखचिल्ली तमतमाता हुआ व्यापारी के घर पहुंचा। व्यापारी उसे देखकर बहुत खुश हुआ। उसको लगा कि आज फिर कोई नई जादूई चीज मिलेगी।

शेखचिल्ली ने जाते ही व्यापारी से सवाल दागा- क्या तुमने मेरी जादूई चीजें चुराई हैं।

व्यापारी डरते हुए बोला- ये तुम क्या कह रहे हो, मैं भला क्यों तुम्हारा सामान चुराऊंगा।

शेखचिल्ली बोला- सच बोल रहे हो?

व्यापारी- हां, मैं सच बोल रहा हूं।

शेखचिल्ली- इसका फैसला तो अभी हो जाएगा।

और उसने अपने जादूई डंडे को इशारा किया और डंडा अपने आप व्यापारी के सिर पर तड़ातड़ प्रहार करने लगा। व्यापारी हैरान, परेशान, डंडे के प्रहार से निकली जा रही थी उसकी जान।

पिटते-पिटते व्यापारी का कचूमर निकल गया। हारकर वो शेखचिल्ली के पैरों में गिर गया और बोला- भैया मैंने ही तुम्हारी चीजें चुराई हैं, इस डंडे से कहो कि मुझे न मारे मैं तुमको सब अभी वापस किए देता हूं।

डंडे ने अपना काम बंद कर दिया। व्यापारी ने अपने कमरे में से लाकर शेखचिल्ली को सारा असली सामान सौंप दिया।

शेखचिल्ली का खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वो तेज कदमों से अपने गांव की ओर दौड़ा। घर पहुंचकर अपनी मां से लिपट गया।

लेकिन मां अभी भी उससे कल की बात पर नाराज थी।

शेखचिल्ली ने अपनी मां को मनाया। अपने टोकरे में हाथ डाला और एक खूबसूरत साड़ी मां के हाथों में रख दी। कढ़ाई में से स्वादिष्ट पकवान निकाले और मां को खिलाए। मां की आंखों में आंसू आ गए।

परियों के दिए सामान की मदद से मां और बेटे चैन की जिंदगी बिताने लगे।

Saturday, June 29, 2013

ला मेरी चने की दाल!

एक बार एक राजकुमार अपने घोड़े पर सवार होकर यात्रा पर निकला। जब राजकुमार जंगल से होकर गुजरा तो उसे ध्यान आया कि इस जंगल में एक बंदर रहता है जो यात्रियों को चने खिलाता था। राजकुमार ने सोचा कि क्यों न उस बंदर से मिला जाए। राजकुमार जंगल में उस बंदर से मिलने के लिए चल दिया। कुछ दूर जाने पर एक नदी के किनारे पेड़ पर वो बंदर मिला। राजकुमार ने उसी पेड़ के नीचे अपने घोड़े को बांध दिया। बंदर ने उसका सत्कार किया और राजकुमार को खाने के लिए चने दिए। चने खाकर राजकुमार ने पेड़ की ठंडी-ठंडी छांव में विश्राम किया।

एक पहर विश्राम करने के बार राजकुमार चलने के लिए तैयार हुआ। जैसे ही राजकुमार चलने के लिए घोड़े पर सवार हुआ, तो बंदर ने अपनी फरमाइश रख दी। उसने राजकुमार से कहा कि वो भी उसके साथ यात्रा पर जाना चाहता है। राजकुमार ने बंदर को साथ ले जाने से इंकार कर दिया। इस पर बंदर बोला- अगर साथ नहीं ले जाना तो ला वापस कर मेरी चले की दाल।

अब राजकुमार बंदर की चने की दाल कैसे वापस करे। तो मजबूरी में उसने बंदर को अपने साथ घोड़े पर बैठा लिया।

चलाचला... चलाचल... एक नदी आई, उस नदी के किनारे महिलाएं दही के मटके लेकर जा रही थीं।

बंदर ने उन महिलाओं को देखकर कहा- राजकुमार मुझे वो दही की मटकी चाहिए।

राजकुमार ने कहा- मैं कहां से दूं मटकी, मटकी तो उन महिलाओं की है। और तू मटकी का करेगा क्या?

बंदर बोला- मैं कुछ नहीं जानता मुझे वो मटकी चाहिए।

राजकुमार ने साफ मना कर दिया।

इस पर बंदर बोला- मटकी नहीं दिलानी तो अपना पेट फाड़ और ला मेरी चने की दाल।

राजकुमार बड़ा परेशान, बंदर ने उसको बुरा फंसाया। राजकुमार बोला- मैं तो नहीं जाऊंगा, तुझे ला मिले तो ले आ मटकी।

बंदर झट से गया और महिलाओं को जोर की घुड़की दी। सारी महिलाएं अपनी मटकी छोड़-छोड़ कर भाग गईं। बंदर ने एक मटकी उठाई और वापस घोड़े पर आकर सवार हो गया।

चलाचल.... चलाचल.... उन्हें रास्ते में एक ढोलक बेचने वाला मिला।

बंदर ने फट से राजकुमार से बोला- मुझे ढोलक चाहिए।

राजकुमार को गुस्सा आया, बंदर की मांग बढ़ती ही जा रही थीं। उसने बंदर से कहा- इस जंगल में तो भला ढोलक का क्या करेगा?

बंदर बोला- मैं चाहे जो करूं, मुझे ढोलक चाहिए बस।

राजकुमार ने साफ मना कर दिया।

इस पर बंदर बोला- या तो मुझे ढोलक दिला या फिर पेट फाड़ और निकाल मेरी चने की दाल।

राजकुमार बुरा फंस चुका था। उसने बंदर से कहा कि अपने आप ले आए ढोलक।

बंदर कूद कर गया और ढोलक वाले को जोर से घुड़की दी, ढोलक वाला अपनी ढोलक छोड़कर भाग गया। बंदर ने एक ढोलक उठा ली और वापस राजकुमार के घोड़े पर आकर सवार हो गया।

चलाचल.... चलाचल.... उनको एक जंजीर बेचने वाला मिला।

बंदर ने फिर राजकुमार से बोला कि उसको जंजीर चाहिए।

राजकुमार के मना करने पर फिर उसने वही धमकी दी कि पेट फाड़ और निकाल मेरी चने की दाल।

आखिरकार बंदर ने लुहार से एक जंजीर छीन ली।

चलाचल... चलाचल.... फिर बंदर ने एक चरवाहे से बकरी का एक बच्चा छीन लिया।

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इस तरह राजकुमार और बंदर एक नगर में पहुंचे। उस नगर में चारों तरफ सन्नाटा पसरा था। राजकुमार को इतना सन्ना देखकर थोड़ा अजीब सा लगा। वे दोनों एक घर के दरवाजे पर पहुंचे। दरवाजा खटखटाया तो अंदर से एक लड़की ने दरवाजा खोला। वो राजकुमार को देखकर हैरान हो गई।

राजकुमार ने पूछा कि तुम इतनी हैरान क्यों हो?

तो उस लड़की ने जवाब दिया- तुम लोग गलत जगह आ गए हो, ये दानवों की नगरी है। अभी सब दानव शिकार पर गए हुए हैं, लेकिन शाम को जैसे ही सब लौटेंगे तुम दोनों को जिंदा नहीं छोड़ेंगे। मेरे पिताजी को पांच कोस तक इंसान की गंध आ जाती है।

इस पर राजकुमार ने कहा- अब तो तुम ही हमें बचा सकती हो, देर बहुत हो चुकी है। वापस जाना मुमकिन नहीं है।

लड़की राजकुमार की सुंदरता पर मोहित हो चुकी थी। सो, उसने राजकुमार को बचाने का फैसला किया। उसने राजकुमार के घोड़े को अपने जादू से मक्खी बनाकर दीवार पर चिपका दिया। और राजकुमार और बंदर से कहा कि छत पर जाकर छिप जाएं। वे दोनों छत पर जाकर छिप गए।

दिन छिपते ही दानव घर लौटकर आया। आते ही उसको महसूस हुआ कि घर में मनुष्य की गंध समाई है। वो झट से अपने बेटी से बोला- बेटी मानुष गंध, मानुष गंध, मानुष गंध...

लड़की ने बात को टालते हुए कहा- क्या बाबा हर समय मानुष गंध-मानुष गंध करते रहते हो। दारू के नशे में तुमको बहका दिया। भला इस भयानक दानवों की नगरी में कोई मानव आ सकता है क्या?

दानव को बेटी की बात पर विश्वास हो गया। उसने खाना खाया और जाकर सो गया।

जिस कमरे में दानव सो रहा था, उसमें छत से एक मोखला खुलता था। छत पर बैठे बंदर ने जैसे ही दानव को नीचे सोते हुए देखा उसको शरारत सूझी। उसने राजकुमार से कहा- राजकुमार मुझको सू सू आई है।

राजकुमार बोला- ससुरे यहां हमारी जान के लाले पड़े हैं, और तुझे सू सू आ रही है। जा जाकर पिछली दीवार पर कर ले।

बंदर बोला- नहीं मैं तो इसी मोखले में करूंगा।

राजकुमार बोला- अबे मरवाएगा क्या मुझे, कौन से जनम के बदले ले रहा है तू मुझसे।

बंदर बोला- या तो मुझे करने दे या फिर पेट फाड़ निकाल मेरी चने की दाल।

राजकुमार बोला- चने की दाल के बदले में क्या मेरी जान लेगा, कमबख्त।

बंदर बोला- सोच ले।

राजकुमार ने कहा- जो जी में आए कर ले।

बंदर झट से गया और मोखले में सू सू कर दी।

सू सू नीचे सो रहे दानव के मुंह पर जाकर गिरी।

दानव हड़बड़ा कर उठा और जोर से चिल्लाया- बेटी मानुष गंध, मानुष गंध, मानुष गंध....

लड़की ने बात संभाली- बापू तुमको भी न सपने आ रहे हैं। मैंने छत पर पानी का मटकी रख दी थी, वही गिर गई होगी हवा से।

दानव फिर सो गया। ऊपर बैठे राजकुमार ने राहत की सांस ली।

बंदर को इस पर चैन नहीं आया और वो राजकुमार से बोला- राजकुमार मुझे खांसी आ रही है।

राजकुमार खबराकर बोला- अगर तूने जरा सी भी आवाज की तो ये दानव हम दोनों को खा जाएगा। चुपचाप अपना मुंह बंद करके बैठा रह।

बंदर बोला- खांसी को कैसे रोकूं।

राजकुमार बोला- अच्छा तो जा पीछे की तरफ मुंह करना और मुंह पर हाथ रखकर आहिस्ते से खांसना।

बंदर बोला- न जी न, खांसूंगा तो इसी मोखले में।

राजकुमार- अबे कमबख्त ये क्यों नहीं कहता कि तू मेरी जान लेना चाहता है।

बंदर बोला- या तो मुझे खांसने दे या फिर ला मेरी चने की दाल।

राजकुमार बोला- पता नहीं कौन सी बुरी घड़ी थी कि मैंने तेरी चने की दाल खा ली। जा मर, और मुझे भी मरवा दे।

बंदर गया और मोखले में मुंह लगाकर जोर से खांसा- खौं खौं खौं....

आवाज सुनते ही दानव उठ खड़ा हुआ और बोला- बेटी अब मुझे मत रोकना घर के अंदर मानव घस आया है। मैं आज उसको खा जाऊंगा।

झट से दानव छत पर पहुंच गया, वहां अंधेरा हो रहा था। दानव को अंधेरे में कुछ खास नजर नहीं आ रहा था। राजकुमार पहले ही जाकर छिप गया था। बस बंदर ही सामने था, जिसकर परछांई हल्की सी रोशनी में बहुत बड़ी नजर आ रही थी।

उसने अंदाजे से पूछा- तू कौन?

बंदर ने जवाब में पूछा- पहले बता तू कौन?

दानव बोला- मैं दानव!

बंदर बोला- तू दानव, तो मैं सवा दानव।

दानव ने पूछा- सवा दानव भला कैसे?
बंदर ने कहा जानना चाहता है कैसे, तो तुझे अभी बताता हूं। चल मेरे ऊपर थूक।

दानव ने बंदर के ऊपर थूका। बंदर को पता भी नहीं चला।

ले अब तू मेरा थूक संभाल। और बंदर ने दही का वो मटका जो रास्ते में छीना था, उठाकर दानव के ऊपर उड़ेल दिया।

दानव घबरा गया। इतना सारा थूक।

बंदर बोला- ये तो मैंने एक गाल से थूका है अगर दोनों गालों से थूक दिया तो यहां बाढ़ आ जाएगी। चल अब मुझे अपनी पूंछ से मार।

दानव ने अपनी पूंछ से बंदर पर प्रहार किया। बंदर पर खास फर्क नहीं पड़ा।

बंदर बोला ले अब मेरी पूछ संभाल और उसने रास्ते में छीनी जंजीर को पूरी ताकत से घुमाकर दानव की कमर में जड़ दिया। जंजीर का प्रहार पड़ते ही दानव बिलबिला गया।

बंदर बोला देख ली मेरी पंूछ की ताकत। चल अब अपनी जूं मेरे ऊपर फेंक।

दानव ने अपने सिर से एक जूं निकाली और बंदर के ऊपर फेंकी। बंदर को पता भी नहीं चला।

फिर बंदर बोला ले अब मेरी जूं देख और उसने रास्ते में छीना बकरी का बच्चा दानव की तरफ उछाल दिया। इतनी बड़ी जूं देखकर दानव बुरी तरह घबरा गया।

बंदर बोला चल अब मुझे अपना पेट बजाकर दिखा। दानव ने पेट बजाया, तो खास आवाज नहीं आई।

बंदर बोला ले अब मेरे पेट की आवाज सुन और रास्ते में छीना ढोल जोर से बजा दिया- ढोल की आवाज सुनकर दानव बुरी तरह घबरा गया और वहां से जान बचाकर भागा।

अगले दिन उस दानव ने अपने नगर में एक सभा बुलाई ये बताने के लिए कि नगर में एक ’’सवा दानव’’ घुस आया है।

इधर राजकुमार ने उस लड़की से भागने का रास्ता पूछा।

लड़की ने कहा कि रास्ता तो वो बताएगी, लेकिन वो भी साथ चलेगी। राजकुमार तैयार हो गया। लड़की ने अपने पिता की जादूई चटाई दिखाई जो हवा में उड़ती थी। वो राजकुमार, बंदर और घोड़े को लेकर उस चटाई पर सवार हो गई और सब हवा में उड़ने लगे।

बंदर ने ऊपर से देखा कि सारे दानव नीचे सभा कर रहे हैं। उसने जोर से अपनी ढोलक बजाई। उसकी आवाज सुनते ही सारे दानव घबराकर भागे, इधर-उधर, लदर-पदर, गिरते-पड़ते, किसी की धोती खुली, किसी कि जूती छूटी।

राजकुमार बंदर और उस लड़की के साथ अपने महल में आ गया। बंदर को रहने के लिए उसने एक अलग जगह दी और लड़की को अपनी रानी बना लिया।

Friday, June 7, 2013

खिचड़ी बना दी

एक बार शेखचिल्ली अपनी ससुराल गए। ससुराल में उनकी सास उनसे प्यार तो करती थीं, पर एक नंबर की कंजूस थीं। उन्होंने शेखचिल्ली के लिए बहुत सारे पकवान न बनाकर उनके लिए सिर्फ खिचड़ी बनाई। खिचड़ी अभी बन ही रही थी कि शेखचिल्ली रसोई में पहुंच गया और बातें करने लगा। बातों-बातों में शेखचिल्ली का हाथ ऊपर रखे घी के डिब्बे से टकरा गया और पूरा डिब्बा खिचड़ी में गिर गया। पूरा एक किलो घी खिचड़ी में समा गया। शेखचिल्ली की कंजूस सास को बहुत गुस्सा आया। लेकिन कुछ कहते नहीं बना। सास के मन में ख्याल आया कि अगर वो सारी खिचड़ी शेखचिल्ली को दे देती है तो सारा घी उसके हाथ से निकल जाएगा। उसको जरा सा घी भी खाने को नहीं मिलेगा। सो, सास ने एक तरकीब सोची। जैसे ही शेखचिल्ली खिचड़ी खाने चारपाई पर बैठा तो सास ने झट से कहा- दामाद जी हमारे यहां रिवाज है कि सास और जमाई एक ही थाली में खाना खाते हैं। शेखचिल्ली ने सास को अपने सामने चारपाई पर बैठा लिया। सास का वजन शेखचिल्ली से ज्यादा था, इसलिए थाली सास की तरफ झुक गई और खिचड़ी का ज्यादातर घी बह कर उसकी तरफ पहुंच गया।

खिचड़ी में जब एक किलो घी पड़ा हो तो उसके स्वाद के क्या कहने। शेखचिल्ली को खिचड़ी इतनी पसंद आई कि वो अपनी सास के गुणगाान करने लगा। शेखचिल्ली ने अपनी सास से पूछा ये जो आपने मुझे खिलाया इसका नाम क्या था, मैं घर जाकर इसे ही बनवाउंगा। सास ने बताया कि इसे खिचड़ी कहते हैं।

शेखचिल्ली को लगा कि रास्ते में वो इसका नाम न भूल जाए सो वो चलते-चलते उसका नाम रटने लगा- खिचड़ी, खिचड़ी, खिचड़ी, खिचड़ी, खिचड़ी......

खिचड़ी-खिचड़ी रटते हुए उसे रास्ते में उसे लघुशंका लगी। वो जैसे ही लघुशंका करके उठा। वो खिचड़ी की जगह खाचिड़ी-खाचिड़ी रटने लगा।

जब वो खाचिड़ी खाचिड़ी करता हुआ जा रहा था, तो रास्ते में एक किसान अपने खेत की चिडि़या उड़ा रहा था। जैसे उसने शेखचिल्ली के मुंह से खाचिड़ी खाचिड़ी सुना उसको बहुत गुस्सा आया। उसने झट से शेखचिल्ली को पकड़ा और उसको गरियाते हुए बोला- मैं यहां सुबह से चिडि़या उड़ाते-उड़ाते थक गया और तू बोल रहा है खाचिड़ी-खाचिड़ी। बेवकूफ तुझे बोलना चाहिए उड़चिड़ी-उड़चिड़ी।

शेखचिल्ली अब उड़चिड़ी-उड़चिड़ी बोलने लगा और बोलते-बोलते आगे चल दिया।

जब शेखचिल्ली उड़चिड़ी रटते हुए जा रहा था तो एक तालाब के किनारे एक आदमी ने मछली पकड़ने के लिए कांटा डाला हुए था। जब उसने शेखचिल्ली के मुंह से उड़चिड़ी-उड़चिड़ी सुना तो उसको बहुत गुस्सा आया। उसने झट से शेखचिल्ली को पकड़ लिया और दो चमाट मारते हुए बोला- अबे मैं सुबह से यहां बैठा मछली पकड़ने की कोशिश कर रहा हूं और तू बोल रहा है उड़चिड़ी-उड़चिड़ी। तुझे तो ये बोलना चाहिए- ‘आते जाओ फंसते जाओ, आते जाओ फंसते जाओ’।

अब शेखचिल्ली वही बोलने लगा और बोलते हुए आगे चल दिया।

जब शेखचिल्ली ‘आते जाओ फंसते जाओ’ रटता हुआ जा रहा था तो उधर से कुछ चोर चोरी करने के इरादे से जा रहे थे। जैसे ही उन्होंने शेखचिल्ली के मुंह से सुना ‘आते जाओ फंसते जाओ’ तो उनको बहुत गुस्सा आया। उन्होंने उसको पकड़कर पीटा और कहा कि एक तो हम चोरी करने जा रहे हैं और तू बोल रहा है कि आते जाओ फंसते जाओ। तुझको तो बोलना चाहिए- ‘आते जाओ रखते जाओ...’

अब शेखचिल्ली वही रटने लगा, जो उसे बताया गया और आगे चल दिया।

जब शेखचिल्ली ‘आते जाओ रखते जाओ’ रटता हुआ जा रहा था तो रास्ते में श्मशान घाट पड़ा वहां कुछ लोग एक मुर्दा लेकर आए थे। जैसे ही उन्होंने शेखचिल्ली के मुह से सुना आते जाओ रखते जाओ, तो उन सबको बहुत गुस्सा आया और उन्होंने शेखचिल्ली को पकड़कर खूब पीटा। और कहा मनहूस क्यों ऐसी मनहूसियत की बातें कर रहा है तुझे तो ये बोलना चाहिए- जैसा यहां हुआ वैसा कहीं न हो, जैसा यहां हुआ वैसा कहीं न हो।

अब शेखचिल्ली यही बात रटता हुआ आगे चल दिया।

जब तो ये बात रटते हुए आगे बढ़ रहा था तो रास्ते में एक राजा के बेटे की बारात जा रही थी। जैसे ही लोगों ने शेखचिल्ली के मुंह से सुना कि जैसा यहां हुआ वैसा कहीं न हो, तो बारातियों को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने शेखचिल्ली को पकड़कर पीटना शुरू कर दिया। उन्होंने उससे कहा कि ऐसे शुभ काम में भी तू ऐसी मनहूस बातें कर रहा है। तुझे तो ये बोलना चाहिए जैसा यहां हो वैसा सबके यहां हो।

अब शेखचिल्ली यही बात बोलता हुआ आगे चल दिया। और चलते चलते अपने घर पहुंच गया।

घर पहुंचते पहुंचते वो खिचड़ी का नाम पूरी तरह भूल गया। घर पर उसकी पत्नी मिली उसने अपनी मां के हाल चाल पूछे। हाल चाल बताने के बाद शेखचिल्ली ने अपनी पत्नी को प्यार से पास बुलाया और बोला- सुनो, आज तुम हमको वही बनाकर खिलाना जो तुम्हारी मां ने हमें खिलाया था।

पत्नी खुश होकर बोली- अरे इसमें क्या बात है, बना दूंगी, तुम ये बताओ कि मां ने क्या खिलाया था।

अब शेखचिल्ली को खिचड़ी का नाम याद न आए। वो बस पत्नी से अकड़कर बोला- ये सब मैं कुछ नहीं जानता, मुझे तो केवल वही खाना है जो तुम्हारी मां ने मुझे खिलाया।

पत्नी हैरान और परेशान होकर बोली- बनाउंगी तो तब जब मुझे ये पता चलेगा कि मां ने बनाया क्या था?

शेखचिल्ली को गुस्सा आ गया और वो पत्नी से झगड़ने लगा। पत्नी को भी गुस्सा आ गया और वो भी जवाब देने लगी।

दोनों में खूब बहस हुई और बात हाथापाई पर पहुंच गई। शेखचिल्ली ने अपनी बीवी को धुनाई शुरू कर दी। बीवी चिल्लाती हुई घर के बाहर निकल आईं। शेखचिल्ली उसको बाहर घर के चैक पर पीटने लगा। पत्नी का बुरा हाल हो गया। लेकिन शेखचिल्ली का हाथ नहीं रुका।

शोर सुनकर अड़ोसी-पड़ोसी बाहर निकल आए और तमाशा देखने लगे। तभी उन लोगों में एक बुढि़या बोली- हाय रे नाश हो तेरा... बेचारी बहू को मारते-मारते उसकी खिचड़ी बना दी।

खिचड़ी का नाम सुनते ही शेखचिल्ली का दिमाग चैंका और वो बोला- वही तो मैं कह रहा था इससे बनाने के लिए। इत्ती देर से सुन ही न रही है बात को।

बीवी बोली अरे मेरे खसम पहले ही बता देते कि तुमको खिचड़ी खानी है तो मैं तुम्हें पहले ही पका कर खिला देती।

खैर दोनों मिया-बीवी घर के अंदर आए। पत्नी ने खिचड़ी बनाई और दोनों में मिलकर खाई। लेकिन शेखचिल्ली को उतना स्वाद नहीं आया जितना सास की खिचड़ी में आया था।

Monday, June 3, 2013

चुहिया और मेंढकी

एक बार एक मेंढकी को अपनी सहेली चुहिया की बहुत याद आई। उसने सोचा कि बहुत दिन हुए सहेली से मिले, क्यों न चुहिया के घर जाकर उसके हालचाल ले लिया जाएं। सो मेंढकी अपने तालाब से निकली और चुहिया के बिल पर जाकर दरवाजा खटखटाया।

चुहिया अचानक अपनी पुरानी सहेली को देखकर बहुत खुश हुई। वो खुशी-खुशी मेंढकी को अपने बिल में ले गई। दोनों सहेलियों ने खूब गप्पें लड़ाईं। चुहिया ने अपनी सहेली मेंढकी के लिए लजीज खाना बनाया। पूरा बिल खाने की खुशबू से महक उठा।

तभी मेंढकी ने अपनी सहेली से पूछा- ‘जीजा जी कहीं नजर नहीं आ रहे क्या कहीं बाहर गए हैं?’

इस पर चुहिया ने बताया- ‘वो बाहर बैठक में गए हैं। वहां चूहा समाज के लोग उनसे मिलने आए हैं। तुम चाहो तो जाकर उनको बुला लाओ। फिर मिलकर खाना खाएंगे।’

मेंढकी फुदकती हुई बैठक की ओर चल दी। वहां जाकर देखा तो वहां तमाम चूहे बैठक में बैठे थे।

मेंढकी ने आव देखा न ताव और अपने जीजा को छेड़ने के अंदाज में बोली- ‘ओ रे मूसा कोटी काटा, रूई बिगाड़ा, घर चल जल्दी घर चल।’

चूहे भरे समाज में इस तरह सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने गुस्से में जवाब दिया- ‘नाक की नकटी, कान की बूची घर जा ससुरी घर जा।’

ये सुनकर मेंढकी शर्म से पानी-पानी हो गई। और तमतमाती हुई वापस आकर जोर-जोर से रोने लगी।

उसकी सहेली चुहिया ने उससे पूछा- ‘क्या हुआ बहन ऐसे क्यों रो रही हो?’

मेंढकी ने जवाब दिया- ‘बहन तुम्हारे पति ने मेरा इतना अपमान किया है कि अब मैं जीना नहीं चाहती।’

चुहिया ने पूछा - ‘ऐसा क्या कह दिया मेरे पति ने।’

मेंढकी ने वो बात चुहिया को सुनाई जो चूहे ने उसको बोली थी।

चुहिया को सुनकर हैरानी हुई। उसने पूछा अब ये बताओ कि तुमने उनसे क्या कहा था?

मेंढकी ने वो बात भी बताई जो उसने बोली थी।

चुहिया को समझते देर न लगी। उसने मेंढकी से कहा कि तुमने भरे समाज में मेरे पति के लिए अच्छे शब्दों को प्रयोग नहीं किया। तुमको भी सही भाषा का प्रयोग करना चाहिए था। पहली गलती तुमने की।

इस पर मेंढकी शर्मिंदा हुई। उसने फिर अपनी सहेली से पूछा कि फिर किस तरह वो अपने जीजा को बुलाए।

तो चुहिया ने उसको बताया कि अब जाकर इस तरह बुलाना- ‘भूरे दंत, कपूरे कंत, घर चलो बालम घर चलो।’

मेंढकी फिर फुदकती हुई बैठक की ओर गई और वहां जाकर बोली- ‘भूरे दंत, कपूरे कंत, घर चलो बालम घर चलो।’

चूहे को मेंढकी का ये अंदाज पसंद आया और उसने कहा- ‘धूप पड़त है घाम पड़त है, घर चलो सजनी, घर चलो।’

दोनों जीजा-साली खुशी-खुशी घर आए। चुहिया ने सबको स्वादिष्ट खाना परोसा। फिर शाम को अपनी सहेली को विदा किया।

बड़बोली चिडि़या

एक राजा के महल में पिलखुन का पेड़ था। उस पेड़ पर एक चिडि़या अपना घोंसला बनाकर रहती थी। एक बार उस चिडि़या को कहीं से कानी कौड़ी मिल गई। चिडि़या ने उस कानी कौड़ी को लाकर अपने घोंसले में रख लिया और अपनी इस धरोहर पर इतराने लगी।

चिडि़या हर रोज सुबह उठती और गाना शुरू कर देती- जो हम पै, सो काहु पै न... जो हम पै, सो काहु पै न...।

रोज-रोज चिडि़या का गाना सुनकर महल के लोग तंग आ गए। महल के राजा ने अपने सिपाहियों को हुकुम दिया- ‘‘जाओ, जाकर देखकर आओ, ऐसा क्या है इस चिडि़या के पास जो किसी के पास नहीं है!’’

राजा के सिपाही दौड़कर गए, पेड़ पर चढ़े और चिडि़या के घोंसले में झांककर देखा। उसमें एक कानी कौड़ी रखी थी। उस कौड़ी को देखकर सिपाही खूब हंसंे

वो लौटकर आए और आकर सारी बात राजा को बताई। राजा को भी सुनकर बहुत हंसी आई। अभी राजा हंस ही रहा था कि चिडि़या ने फिर गाना शुरू कर दिया- जो हम पै, सो काहु पै न... जो हम पै, सो काहु पै न...।

राजा को चिडि़या का ये शेखी गान सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने अपने सैनिकों से कहा- ‘जाओ और जाकर इस चिडि़या की कानी कौड़ी उठा लाओ’। सैनिक दौड़े-दौड़े गए और चिडि़या के घोंसले से कानी कौड़ी उठा लाए।

चिडि़या जब शाम को लौटी, तो उसने अपने घोंसले में कानी कौड़ी न पाकर इस तरह रोना शुरू कर दिया- ‘‘राजा कंगाल हमारी कानी कौड़ी ले गए, राजा कंगाल हमारी कानी कौड़ी ले गए।’’

राजा को चिडि़या का इस तरह आरोप लगाना बेहद नगवार गुजरा। उसने झुंझलाहट में अपने सैनिकों से कहा ‘‘जाओ उस ससुरी की कानी कौड़ी वापस रख आओ।’’

सैनिक दौड़े-दौड़े गए और चिडि़या की कानी कौड़ी वापस रख आए।

चिडि़या जब शाम को लौटी तो अपनी कानी कौड़ी वापस पाकर जोर-जोर से चिल्लाने लगी- ‘‘राजा डरपोंक हमारी कानी कौड़ी दे गए.... राजा डरपोंक हमारी कानी कौड़ी दे गए...।’’

चिडि़या के इस आरोप ने राजा को बेहद गुस्से से भर दिया। उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया- ‘जाओ इस बड़बोली चिडि़या को भालों से छेद दो।’

सैनिक अपना भाला लेकर गए और जाकर चिडि़या को भालों से छेद दिया। चिडि़या बुरी तरह घायल हो गई।

उसके घावों से खून बहने लगा। खून को देखकर चिडि़या ने गाना शुरू किया- ‘हमें लाल लंगोटा पाए जी, हमें लाल लंगोटा पाए जी...।’

फिर दो दिन बाद उसके घावों में पस पड़ गया। इस पर चिडि़या ने गाना गया- ‘हमें दही के मटके पाए जी, हमें दही के मटके पाए जी...।’

चिडि़या जब मरणासन्न हो गई तो उसको हिचकी आने लगी। तो चिडि़या ने गाया- ‘हमें राम झटोका आए जी, हमें राम झटोका आए जी....।’

और आखिरकार वो चिडि़या मर गई।